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शनिवार, 30 अप्रैल 2016

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 10

विभूति व योगशक्ति (अध्याय 10 शलोक 1 से 7)
श्रीभगवानुवाच:
भूय एव महाबाहो शृणु मे परमं वचः।
यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया॥१०- १॥
फिर से,हे महाबाहोतुम मेरे परम वचनों को सुनो। क्योंकि तुम मुझे प्रिय हो इसलिये मैं तुम्हारे हित के लिये तुम्हें बताता हूँ।

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 9

ज्ञान वर्णन (अध्याय शलोक से 6) 
श्रीभगवानुवाच:
इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे।
ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्॥९- १॥
मैं तुम्हे इस परम रहस्य के बारे में बताता हूँ क्योंकि तुममें इसके प्रति कोई वैर वहीं है। इसे ज्ञान और अनुभव सहित जान लेने पर तुम अशुभ से मुक्ति पा लोगे।

गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 8

विषयक प्रश्नोत्तर (अध्याय शलोक से 7) 
अर्जुन उवाच :
किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते॥८- १॥
हे पुरुषोत्तमब्रह्म क्या हैअध्यात्म क्या हैऔर कर्म क्या होता है। अधिभूत किसे कहते हैं और अधिदैव किसे कहा जाता है।

बुधवार, 27 अप्रैल 2016

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 7


सगुण ब्रह्म का ज्ञान (अध्याय शलोक से 12)श्रीभगवानुवाच :
मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः।
असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु॥७- १॥
मुझ मे लगे मन सेहे पार्थमेरा आश्रय लेकर योगाभ्यास करते हुऐ तुम बिना शक के मुझे पूरी तरह कैसे जान जाओगे वह सुनो।

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 6


निष्काम कर्म वर्णन अध्याय शलोक से 4) 
श्रीभगवानुवाच :

अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः।
स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः॥६- १॥
कर्म के फल का आश्रय न लेकर जो कर्म करता हैवह संन्यासी भी है और योगी भी। वह नहीं जो अग्निहीन हैन वह जो अक्रिय है।

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 5

अर्जुन उवाच
संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि।
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम्॥५- १॥
हे कृष्णआप कर्मों के त्याग की प्रशंसा कर रहे हैं और फिर योग द्वारा कर्मों को करने की भी। इन दोनों में से जो ऐक मेरे लिये ज्यादा अच्छा है वही आप निश्चित कर के मुझे कहिये॥

रविवार, 24 अप्रैल 2016

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 4

भागवद् महिमा (अध्याय 4)

श्रीभगवानुवाच:

इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्॥४-१॥
इस अव्यय योगा को मैने विवस्वान को बताया। विवस्वान ने इसे मनु को कहा। और मनु ने इसे इक्ष्वाक को बताया॥

शनिवार, 23 अप्रैल 2016

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 3

कर्तव्य व कर्म का महत्व (अध्याय 3)


अर्जुन बोले:
शलोक 1

ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन।
तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव॥३- १॥

हे केशवअगर आप बुद्धि को कर्म से अधिक मानते हैं तो मुझे इस घोर कर्म में क्यों न्योजित कर रहे हैं॥

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 2


संजय बोले (Sanjay Said):
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः॥२- १॥

तब चिंता और विशाद में डूबे अर्जुन कोजिसकी आँखों में आँसू भर आऐ थेमधुसूदन ने यह वाक्य कहे॥

गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 1

(अर्जुनविषादयोग)

यदा-यदा ही धर्मस्य:,ग्लानिर्भवतिभारत:।
अभ्युत्थानमअधर्मस्य,तदात्मानमसृजाम्यहम:।।

धृतराष्ट्र उवाच

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ॥१-१॥

धृतराष्ट्र बोले- हे सञ्जय ! धर्मभूमि कुरुक्षेत्रमें एकत्रित, युद्धकी इच्छावाले मेरे 
और पाण्डुके पुत्रोंने क्या किया  । । १ ।।