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रविवार, 12 जून 2016

इन्द्रयज्ञ निवारण

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
इन्द्रयज्ञ निवारण 
     एक दिन भगवान् श्रीकृष्ण ने देखा कि वृन्दावन में गोप इन्द्र-यज्ञ करने की तैयारी कर रहे हैं| भगवान् श्रीकृष्ण सर्वज्ञ और अन्तर्यामी हैं| उनसे कोई बात छिपी नहीं है, फिर भी उन्होंने नन्द बाबा से पूछा- पिता जी! आप किस यज्ञ की तैयारी कर रहे हैं| उन्होंने उस यज्ञ के उद्देश्य और उसके फल के बारे में पूछा|
नन्द बाबा ने कहा- पुत्र! भगवान् इन्द्र वर्षा करने वाले मेघों के स्वामी हैं| उन्हीं कि इच्छा पर मेघ जल बरसाते हैं| हम उन्हीं मेघपति भगवान् इन्द्र की यज्ञों द्वारा पूजा किया करते हैं| यह धर्म हमारी कुल-परम्परा से चली आ रही है|
     ब्रह्मा, शंकर आदि के भी शासन करने वाले केशव भगवान् ने इन्द्र को क्रोध दिलाने के लिए नन्द बाबा से बोले- पिता जी मनुष्य अपने कर्म के अनुसार ही पैदा होता है और कर्म से ही मर जाता है| उसे उसके कर्मों के अनुसार ही सुख-दुःख की प्राप्ति होती है| जब सभी प्राणी अपने कर्मानुसार ही फल भोग रहे हैं, तब हमें इन्द्र की क्या आवश्यकता है? वे हमारे पूर्व-जन्म के कर्म नहीं बदल सकते तो उनकी पूजा का क्या प्रयोजन? मनुष्य अपने पूर्व कर्मों के आधीन है| जीव अपने कर्मानुसार ही उत्तम और अधम शरीरों को ग्रहण करता और छोड़ता है| रजोगुण की प्रेरणा से ही मेघ-गण जल बरसाते हैं| उसी से अन्न और अन्न से सब जीवों की जीविका चलती है| इसमें भला इन्द्र का क्या लेना देना है? वह भला क्या कर सकता है?
     पिता जी! न तो हमारे पास किसी देश का राज्य है, और न ही बड़े-बड़े नगर हमारे आधीन हैं| हम तो वनवासी हैं, वन और पहाड़ ही हमारे घर हैं| इसलिए हमें गौओं, ब्रह्मणों और गिरिराज का यजन करना चाहिए| इन्द्र के यज्ञ के लिए जो सामग्री तैयार की गई है वह सारी सामग्री लेकर गोवर्धन जी जाना चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए| वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा गोवर्धन जी का यज्ञ करवाया जाए और उनको भोग लगाया जाय| फिर सभी के द्वारा गोवर्धन परिक्रमा की जाए| ऐसा यज्ञ गोवर्धन को तो प्रिय होगा ही, मुझे भी बहुत प्रिय है|
     भगवान् की इच्छा थी कि इन्द्र का घमण्ड चूर-चूर कर दिया जाए| नन्द बाबा और सभी ने श्रीकृष्ण कि बात सुनकर बड़ी ही प्रसन्नता से स्वीकार कर लिया| भगवान् श्रीकृष्ण ने जैसा यज्ञ करने को कहा था वैसा ही यज्ञ उन्होंने प्रारंभ किया| भगवान् श्रीकृष्ण ने गिरिराज में अपने ही दूसरे स्वरूप को प्रकट कर दिया और बोले ‘मैं गिरिराज हूँ’| भगवान् ने अपने उस दूसरे स्वरूप को ब्रजवासियों के साथ प्रणाम किया और कहने लगे- देखो कैसा आश्चर्य है| गिरिराज ने साक्षात प्रकट होकर हम पर कृपा की है| ये चाहे जैसा भी रूप धारण कर सकते हैं| जो लोग इनका निरादर करते हैं उनको ये नष्ट कर डालते हैं| आज अपना और गौओं का कल्याण करने के लिए इन गिरिराज को हम नमस्कार करेंगे| इस प्रकार श्रीकृष्ण की प्रेरणा से नन्द बाबा आदि ने गिरिराज, गौ और ब्राह्मणों का विधिवत पूजन किया तथा फिर श्रीकृष्ण के साथ सब ब्रज लौट आये|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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