
पारिवारिक मोह
प्रह्लाद महाराज कहते हैं कि हर व्यक्ति पारिवारिक स्नेह से बँधा है। जो व्यक्ति पारिवारिक मामलों में अनुरक्त रहता है वह अपनी इन्द्रियों को वश में नहीं कर सकता। स्वभावतः हर व्यक्ति किसी न किसी से प्रेम करना चाहता है। उसे समाज, मैत्री तथा प्रेम की आवश्यकता होती है। ये आत्मा की माँगे हैं किन्तु वे विकृत रूप में प्रतिबिम्बित होती हैं। मैंने देखा है कि आपके देश के अनेक पुरुषों तथा स्त्रियों का कोई पारिवारिक जीवन नहीं है, बल्कि उन्होंने अपना प्रेम कुत्तो-बिल्लियों पर स्थापित कर रखा है क्योंकि वे किसी न किसी से प्रेम करना चाहते हैं। किन्तु किसी को भी उपयुक्त न पाकर कुत्ते बिल्लियों से प्रेम करने लगते हैं। हमारा कार्य है इस प्रेम को, जिसे कहीं न कहीं स्थापित करना है, कृष्ण पर स्थानान्तरित करना। यही कृष्णभावनामृत है। यदि आप अपने प्रेम को कृष्ण पर स्थानान्तरित करते हैं तो यह सिद्धि है। किन्तु आजकल लोग विचलित हैं तथा ठगे हुए हैं अतएव उन्हें इसका ज्ञान नहीं रहता कि वे अपना प्रेम कहाँ स्थापित करें अतः अन्त में वे कुत्ते-बिल्लियों पर अपना प्रेम स्थापित करते हैं।हर व्यक्ति भौतिक प्रेम से जकड़ा हुआ हैं । भौतिक प्रेम में बहुत आगे बढ़ जाने पर आध्यात्मिक जीवन विकसित कर पाना बहुत कठिन हैं क्योंकि यह प्रेम का बन्धन अत्यन्त बलशाली होता है। इसलिए प्रह्लाद महाराज प्रस्ताव रखते हैं कि मनुष्य को बाल्य काल से ही कृष्णभावनामृत सीखना चाहिए। जब बालक पाँच-छः वर्ष का हो जाता है जैसे ही उसकी चेतना विकसित हो जाती है उसे प्रशिक्षण पाने के लिए पाठशाला भेज दिया जाना चाहिए। प्रह्लाद महाराज कहते हैं कि उसकी शिक्षा को प्रारम्भ से ही कृष्णभावनामावित होना चाहिए। पाँच से लेकर पन्द्रह वर्ष तक की अवधि अत्यन्त मूल्यवान होती है। आप किसी भी बालक को कृष्णभावनामृत का प्रशिक्षण दे सकते हैं और वह इसमें सिद्ध हो जायेगा। | बालक यदि कृष्णभावनामृत में प्रशिक्षित नहीं रहता और उल्टे वह भौतिकतावाद में प्रगति कर लेता है तो उसके लिए आध्यात्मिक जीवन विकसित कर पाना कठिन है। यह भौतिकतावाद क्या है? भौतिकतावाद का अर्थ है कि इस जगत में हम सारे लोग, आत्माएँ होते हुए भी इस जगत में आनन्द लूटना चाहते हैं। आनन्द आध्यात्मिक जगत में अपने शुद्ध रूप में विद्यमान रहता है। किन्तु हम यहाँ कलुषित आनन्द में हिस्सा बँटाने आये है। जिस तरह मधुशाला का हर व्यक्ति सोचता है कि वह कुछ शराब पीकर आनन्द भोग सकता है। भौतिक भोग का मूल सिद्धान्त यौन है। इसलिए उसे यौन न केवल मानव समाज में मिलेगा अपितु बिल्ली समाज, कुत्ता समाज, पक्षी समाज सर्वत्र ही यौन मिलेगा। दिन में कबूतर कम से कम बीस बार संभोग करता है। यही उसका आनन्द है।
(TO BE COUNTINUE)
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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