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मंगलवार, 25 सितंबर 2018

प्रहलाद महाराज जी के उपदेश (सर्वप्रिय पुरुष)


सर्वप्रिय पुरुष
     श्रीमद्भागवत भागवत-धर्म प्रस्तुत करता है अर्थात् ईश्वर विषयक वैज्ञानिक ज्ञान तक ले जाता है। भागवत का अर्थ है, “भगवान् और धर्म का अर्थ है “विधि-विधान ।” यह मानव जीवन सुदुर्लभ है। यह एक महान सुयोग हैं। इसीलिए प्रह्लाद कहते हैं, “मित्रो! तुमलोग सभ्य मनुष्यों के रूप में उत्पन्न हुए हो अतः तुम्हारा यह मनुष्य-शरीर क्षणभंगुर होते हुए भी महानतम सुयोग है। कोई भी व्यक्ति अपनी अवधि नहीं जानता। ऐसी गणना की जाती है कि इस युग में मनुष्य शरीर एक सौ वर्षों तक जीवित रह सकता है। किन्तु ज्यों ज्यों कलियुग आगे बढ़ता जाता है, यह जीवन अवधि (आयु), स्मृति, दया, धार्मिक तथा अन्य ऐसी ही विभूतियाँ घटती जाती है। अतएव इस युग में किसी को भी दीर्घ आयु का भरोसा नहीं हैं। । यद्यपि मनुष्य के स्वरूप क्षणिक हैं फिर भी इसी मनुष्य रूप में आप जीवन की सर्वोच्च सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। वह सिद्धि क्या है? सर्वव्यापक भगवान को जान लेना। अन्य योनियों में यह सम्भव नहीं है। चूंकि हम क्रमिक विकास द्वारा यह मनुष्य स्वरूप प्राप्त करते हैं इसलिए यह दुर्लभ हैं। प्रकृति के नियमानुसार आपको अन्ततः मनुष्य-शरीर दिया जाता है जिससे आप आध्यात्मिक जीवन को प्राप्त करके भगवद्धाम वापस जा सकें। | जीवन का चरम लक्ष्य भगवान् विष्णु या कृष्ण हैं। बाद के श्लोक में प्रह्लाद महाराज कहते हैं, “इस भौतिक जगत के जो लोग भौतिक शक्ति (माया) द्वारा मोहित होते रहते हैं, वे यह नहीं जानते कि मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है? क्यों ? क्योंकि वे भगवान् की ज्वलन्त माया द्वारा मोहित हैं। वे यह भूल चुके हैं कि जीवन तो सिद्धि के चरम लक्ष्य भगवान् विष्णु को समझने के लिए मिला है।” विष्णु या ईश्वर को समझने के लिए हमें क्यों अतीव उत्सुक होना चाहिए? प्रह्लाद महाराज कारण बतलाते हैं, “विष्णु सर्वप्रिय पुरुष हैं। हम उन्हें ही भूल चुके हैं। हम सभी किसी प्रिय मित्र की तलाश में रहते हैं हर व्यक्ति इसी तरह तलाश करता है। पुरुष स्त्री के साथ प्रिय मैत्री करना चाहता है और स्त्री पुरुष से मैत्री करना चाहती है। या फिर एक पुरुष अन्य पुरुष को खोजता है और एक स्त्री अन्य स्त्री को खोजती है। हर व्यक्ति किसी न किसी प्रिय, मधुर मित्र की तलाश में रहता है। ऐसा क्यों? क्योंकि हम ऐसे प्रिय मित्र का सहयोग चाहते है जो हमारी सहायता कर सके। यह जीवन-संघर्ष का अंग है और यह स्वाभाविक है। किन्तु हम यह नहीं जानते कि भगवान् विष्णु हमारे सर्वप्रिय मित्र हैं।
(TO BE COUNTINUE)
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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