|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
भगवान् श्रीकृष्ण का मथुरा में प्रवेश
जल में भगवान् के दिव्य स्वरूप के दर्शन करने के उपरान्त अक्रूर जी जल से बाहर आये और रथ में आ गए| भगवान् श्रीकृष्ण ने पूछा चाचा जी आपके चेहरे की आकृति से लगता है कि आपने जल में कुछ अद्भुत वस्तु के दर्शन किये हैं|अक्रूर जी ने कहा प्रभो! पृथ्वी, आकाश या जल में और सारे जगत में जितने भी अद्भुत स्वरूप हैं, वे सब आप में ही हैं, क्योंकि आप विश्वरूप हैं| जब मैं आपको देख रहा हूँ तब ऐसी कौन सी ऐसी अद्भुत वस्तु हैं जो मैंने नहीं देखी? भगवन! जितनी भी अद्भुत वस्तुएँ हैं, वे पृथ्वी पर हों, जल अथवा आकाश में- सब में मैं आप ही को देख रहा हूँ| गान्दिनी नन्दन अक्रूर जी ने यह कहकर रथ हाँक दिया और दिन ढलते-ढलते वे मथुरापुरी जा पहुँचे| रास्ते में स्थान-स्थान से आते लोग और उन्हें देखकर मग्न हो जाते| अक्रूर जी को भेजकर श्रीकृष्ण ने मथुरापुरी घूमने का प्रण किया|
अक्रूर जी ने जाने से पहले भगवान् श्रीकृष्ण से कहा प्रभो! आप हमें मत छोडिये| प्रभो! मैं आपका भक्त हूँ|इस तरह अक्रूर जी बहुत देर तक भगवान् की लीलाओं का व्याख्यान करते रहे और भगवान् को घर ले जाने की ज़िद की तो भगवान् श्रीकृष्ण ने अक्रूर जी को कहा- चाचा जी मैं दाऊ भैया के साथ आपके घर अवश्य आऊंगा|
भगवान् ने देखा कि मथुरा नगर के परकोटी में स्फटिकमणि (बिल्लौर) के बहुत ऊँचे-ऊँचे दरवाज़े बने हुए हैं और उनमें सोने के बहुत बड़े-बड़े किवाड़ लगे हुए हैं| नगर के चारों ओर पीतल और ताम्बे की चारदीवारी बनी हुई है| स्थान-स्थान पर सुन्दर-सुन्दर उद्यान और रमणीय उपवन (केवल स्त्रियों के उपयोग में आने वाले बगीचे) शोभायमान हैं|स्वरण से सजे हुए चौराहे, धनियों के महल नगर की शोभा बढ़ा रहे हैं| वैदूर्य, हीरे, स्फटिक, नीलम, मूंगे, मोती और पन्ने आदि से जड़े हुए छज्जे, चबूतरे आदि जगमगा रहे हैं|
वसुदेव नन्दन भगवान् श्रीकृष्ण ने बलराम जी के साथ मथुरा में प्रवेश किया| नगर की नारियाँ बड़ी उत्सुकता से दोनों को देखने के लिए झटपट अटारियों पर चढ़ गईं| मथुरा की स्त्रियाँ बहुत दिनों से श्रीकृष्ण की अद्भुत लीलायें सुनती आ रही थीं| आज उन्होंने अपने नेत्रों द्वारा उन्हें देखा|
भगवान् ने देखा कि एक धोबी, जो कपडे रंगने का काम करता था, उनकी ओर आ रहा है| भगवान् ने कहा- तुम हमें कपडे दो जो हमारे शरीर पर पूरे आ जाएँ| हम तुम्हारा कल्याण करेंगे| वह मूर्ख कंस का सेवक होने के कारण मतवाला हो रहा था| भगवान् की वस्तु भगवान् को देना तो दूर रहा, उसने क्रोध से भरकर आक्षेप करते हुए कहा- तुम लोग रहते तो सदा पहाड़ और जंगलों में हो| क्या वहाँ भी ऐसे ही वस्त्र पहनते हो? अब तुम्हें राजा का धन लूटने की इच्छा हुई है| अरे मूर्खों! जाओ| भाग जाओ| यदि जीने की इच्छा है तो इस तरह मत माँगना| तब भगवान् ने तनिक कुपित होकर उसे एक तमाचा लगा दिया और उसका धड़ धड़ाम से नीचे जा गिरा|
इसके बाद उन्हें एक दरजी मिला| उसने भगवान् का शरीर रँग-बिरँगे कपड़ों से ऐसे सजा दिया कि कपडे ठीक-ठाक फब गए| भगवान् श्रीकृष्ण उस दरजी पर बहुत खुश हुए| उन्होंने उसे इस लोक में धन-सम्पति, वैभव आदि से परिपूर्ण कर दिया और अन्त में उसे मोक्ष भी प्रदान किया|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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