|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
सुदामा माली पर कृपा
मथुरा गमन करते-करते भगवान् श्रीकृष्ण सुदामा माली के घर गए| दोनों भाइयों को देखकर सुदामा माली उठ खड़ा हुआ और पृथ्वी पर सिर रखकर उन्हें प्रणाम किया|
फिर उन्हें आसन पर बिठाकर उनके चरण पखारे, हाथ धुलाये और फूलों के हार, पान, चन्दन आदि से विधिपूर्वक पूजा की| इसके पश्चात् उसने प्रार्थना की- प्रभो! आप दोनों के शुभागमन से हमारा जीवन सफल हो गया| हमारा कुल पवित्र हो गया| आज हम पितर, ऋषि और देवताओं के ऋण से मुक्त हो गए| आप दोनों जगत के परम कारण हैं| आप प्रेम करने वालों से ही प्रेम करते हैं, भजन करने वालों को भी भजते हैं- फिर भी आपकी दृष्टि में विषमता नहीं है, क्योंकि आप सारे जगत के परम सुहृद और आत्मा हैं| आप सभी प्राणियों और पदार्थों में स्थित हैं| मैं आपका दास हूँ| आप दोनों मुझे आज्ञा दीजिये कि मैं आपकी क्या सेवा करूँ? भगवन! जीव पर आपका बहुत बड़ा अनुग्रह है, पूर्ण कृपा-प्रसाद है कि आप उसे आज्ञा देकर किसी कार्य में नियुक्त करते हैं| सुदामा माली ने इस प्रकार प्रार्थना करने पर भगवान् का अभिप्राय जानकर बड़े प्रेम और आनन्द से सुन्दर-सुन्दर तथा सुगन्धित पुष्पों से गुँथे हुए हार उन्हें पहनाए| सुदामा माली से प्रसन्न होकर भगवान् ने सुदामा माली को बहुत सारे श्रेष्ठ वर दिए| सुदामा माली ने भगवान् से यही वर माँगा- प्रभो! आपके चरणों में मेरी अविचल भक्ति हो| आपके भक्तों में मेरा सौहार्द, मैत्री का सम्बन्ध हो और समस्त प्राणियों के प्रति दया का भाव बना रहे|भगवान् श्रीकृष्ण ने सुदामा माली के मांगे हुए वर तो दिए ही- ऐसी लक्ष्मी भी दी, जो वंशपरम्परा के साथ-साथ बढती जाए और साथ ही बल, आयु, कीर्ति और कान्ति का भी वर दिया| इसके बाद भगवान् श्रीकृष्ण और बलराम जी वहाँ से विदा हुए|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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