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शुक्रवार, 1 जुलाई 2016

श्रीकृष्ण-बलराम का मथुरा गमन

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
श्रीकृष्ण-बलराम का मथुरा गमन
     भगवान् श्रीकृष्ण ने अक्रूर जी से कहा कि हमारा नाम-मात्र का मामा कंस तो हमारे कुल के लिए एक भयंकर व्याधि है| चाचा जी हमारे लिए यह बड़े खेद की बात है कि मेरे कारण मेरे निरपराध और सदाचारी माता-पिता को अनेकों-प्रकार की यातनाएँ झेलनी पड़ीं| तरह-तरह के कष्ट उठाने पड़े|
मेरे ही कारण उन्हें हथकड़ी और बड़ी में जकड़कर कारागार में डाल दिया गया तथा मेरे ही कारण उनके बच्चे भी मार डाले गए| भगवान् श्रीकृष्ण के आगमन का कारण पूछा|
     अक्रूर जी ने नारद जी और कंस में हुआ सारा वृतान्त बता दिया| अक्रूर जी से यह वृतान्त सुनकर श्रीकृष्ण और बलराम जी दोनों हँसने लगे| इसके बाद अक्रूर जी ने नन्द बाबा को कंस की आज्ञा सुनाई| तब नन्द बाबा ने सब गोपों को आज्ञा दी कि सारा गोरस एकत्र करो और भेंट की सामग्री छकड़ों पर लाद लो| कल प्रातः ही मथुरा की यात्रा करेंगे और वहां जाकर राजा कंस को गोरस देंगे| वहां बहुत भारी उत्सव हो रहा होगा, हम सब देखने के लिए चलेंगे|
     जब गोपीयों ने सुना भगवान् श्रीकृष्ण ब्रज छोड़कर मथुरा जा रहे हैं, तो उनके हृदय में बहुत बड़ी व्यथा हुई|वे व्याकुल हो गईं| भगवान् के स्वरूप का ध्यान आते ही बहुत सी गोपियों की चित्तवृतियाँ सर्वथा निवृत हो गईं, मानो वह समाधिस्थ हो गई हों| सब गोपियाँ विरह की अग्नि में जलने लगीं| सब इकट्ठी होकर श्रीकृष्ण के प्रति अपने-अपने भाव प्रकट करने लगीं| भगवान् ने देखा कि मेरे मथुरा जाने से गोपियों के मन में जलन हो रही है, वे संतप्त हो रही हैं, तब उन्होंने दूत द्वारा प्रेम सन्देश भेजकर उन्हें धीरज बंधाया| गोपियों को जब तक रथ की ध्वजा और पहियों की उध्ती धूल दिखती रही, तब तक उनके शरीर ज्यों-के-त्यों वहीं खड़े रहे| परन्तु उनका चित्त मनमोहन से साथ ही भेज दिया था|
     भगवान् श्रीकृष्ण और बलराम जी अक्रूर जी के साथ रथ में सवार होकर पाप नाशिनी यमुना जी के किनारे पहुँचे| अक्रूर जी ने दोनों भाईयों से आगया लेकर स्नान करने के लिए यमुना जी में डुबकी लगाईं| उसी समय अक्रूर जी ने जल के भीतर देखा श्रीकृष्ण और बलराम दोनों भाई एक साथ जल में बैठे हुए हैं| अब उनके मन में शंका हुई कि दोनों को तो मैं रथ में छोड़ कर आया हूँ, अब ये दोनों जल में कैसे आ गए|अगर ये दोनों यहाँ हैं तो रथ में नहीं होंगे| ऐसा सोचकर उन्होंने सिर बहार निकाला तो वे रथ पर पूर्ववत बैठे हुए थे| फिर उन्होंने सोचा कि मैंने उनको जल में देखा वो मेरा भ्रम ही रहा होगा, फिर दुबकी लगाईं| परन्तु फिर उन्होंने देखा कि साक्षात अनन्त देव श्री शेष जी विराजमान हैं और भगवान् श्रीकृष्ण चतुर्भुज रूप में शेष शैया पर बैठे हैं और सिद्ध, चारण, गन्धर्व आदि अपने सिर झुकाकर उनकी स्तुति कर रहे हैं| श्रीकृष्ण के साथ ही लक्ष्मी सहित पुष्टि, सरस्वती, कान्ति, कीर्ति आदि शक्तियाँ उनकी सेवा कर रही हैं|
     भगवान् की यह झाँकी देखकर अक्रूर जी का हृदय परमानन्द से लबालब भर गया| उन्हें परम भक्ति प्राप्त हो गई| प्रेम भाव से उनके नेत्र आन्सुयों से भर गए| अब अक्रूर जी ने अपना साहस बटोर कर भगवान् के चरणों में सिर रखकर प्रणाम किया और अक्रूर जी दोनों हाथ जोड़कर गदगद स्वर में भगवान् की स्तुति करने लगे|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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