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गुरुवार, 30 जून 2016

अक्रूर जी की ब्रज यात्रा

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
अक्रूर जी की ब्रज यात्रा
     अक्रूर जी रथ पर सवार होकर ब्रज के लिए चल पड़े| परम भाग्यवान अक्रूर जी यात्रा करते समय भगवान् श्रीकृष्ण की प्रेममयी भक्ति में खो गए| सोचने लगे के मैंने ऐसा कौन सा शुभ कर्म किया है, ऐसी कौन सी श्रेष्ठ तपस्या की है या कौन सा ऐसा दान दिया है, जिसके फलस्वरूप आज मैं भगवान् श्रीकृष्ण के दर्शन करूँगा|
मैं बड़ा विषयी हूँ| ऐसी स्थिति में बड़े-बड़े सात्विक पुरुष भी जिनका गान करते रहते हैं, दर्शन नहीं कर पाते- उन भगवान् के दर्शन आज मेरे लिए सुलभ हो गए हैं| अवश्य ही आज मेरे सारे अशुभ नष्ट हो गए हैं| आज मेरा जीवन सफल हो गया, क्योंकि आज मैं भगवान् के उन चरण-कमलों का दर्शन करूँगा, जो बड़े-बड़े योगियों के लिए भी केवल ध्यान के ही विषय हैं|
     ब्रह्मा, शंकर, इन्द्र आदि बड़े-बड़े देवता जिन चरण-कमलों की उपासना करते रहते हैं, स्वयं भगवती लक्ष्मी एक क्षण के लिए भी जिनकी सेवा नहीं छोड़तीं, आज मैं उन श्रीकृष्ण के दर्शन करूँगा| मैं प्रेम और मुक्ति के परम दानी श्रीमुकुन्द के उस मुख-मण्डल का आज अवश्य दर्शन करूँगा| जब समस्त पापों के नाशक उनके परम मंगलमय गुण, कर्म और जन्म की लीलाओं से युक्त होकर वाणी उनका गान करती है, तब उस गान से संसार में जीवन की स्फूर्ति होने लगती है, सारी अपवित्रताएँ धुल जाती हैं| जिस वाणी से उनके गुण, लीला और जन्म की कथाएँ नहीं गायी जातीं, वह तो मुर्दा को ही सुशोभित करने वाली हैं| इन्द्र तथा दैत्य राज बलि ने भगवान् के कर-कमलों में पूजा की भेंट समर्पित करके तीनों लोकों का प्रभुत्व प्राप्त कर लिया| भगवान् ने उन्हीं कर-कमलों से जिनमें दिव्य कमल की सुगन्ध आया करती है, अपने स्पर्श से रासलीला के समय ब्रजयुवतियों की सारी थकान मिटा दी थी| जब भगवान् मुस्कुराते हुए दया भरी दृष्टि से मुझे देखेंगे, उस समय मेरे जन्म-जन्म के समस्त अशुभ संस्कार उसी क्षण नष्ट हो जायेंगे और मैं सदा के लिए परमानन्द में मग्न हो जाऊँगा|
     सांय होते-होते अक्रूर जी नन्द गाँव पहुँच गए| पृथ्वी पर प्रभु के चरणों के चिन्ह देखकर अक्रूर जी वहीं धूलि में लोटने लगे और आँखों से आँसू टपकने लगे कि यही मेरे प्रभु के चरणों की रज है| शुकदेव जी कहते हैं कि कंस के आदेश से यहाँ तक अक्रूर जी के चित्त की जैसी अवस्था रही है, यही जीवों के देह धारण करने का परम लाभ है| इसलिए जीवन मात्र का यही परम कर्तव्य है कि दम्भ, भय और शोक त्यागकर भगवान् की मूर्ति, चिन्ह, लीला, स्थान तथा गुणों के दर्शन श्रवण आदि से ऐसा ही भाव प्रकट करें|
     ब्रज में पहुँच कर अक्रूर जी ने गाय दुहने के स्थान पर दोनों भाईयों को देखा| अभी उन्होंने किशोर अवस्था में प्रवेश ही किया था| उन्हें देखते ही अक्रूर जी प्रेमावेग से अधीर हो गए, रथ से कूद पड़े और भगवान् श्रीकृष्ण और बलराम जी के चरणों के पास साष्टांग लोट गए| भगवान् के मात्र दर्शन से ही उनके नेत्र आंसुओं से भर गए उनकी भगवान् के प्रति इतनी भावना बढ़ गयी कि वे अपना नाम भी नहीं बता सके| शरणागतवत्सल भगवान् श्रीकृष्ण उनके मन का भाव जान गए| उन्होंने बड़ी प्रसन्नता से अक्रूर जी को उठाया और हृदय से लगा लिया| उनके हाथ पकड़कर दोनों भाई उन्हें घर ले गए| घर ले जाकर भगवान् ने उन्हें आसन दिया, मधुपर्क पिलाया और बहुत आदर-सत्कार किया| भगवान् ने स्वयं उनकी थकान दूर करने के लिए उनके पाँव दबाये|
     फिर नन्दराय जी ने उनके पास आकर पूछा- आप निर्दयी कंस के रहते किस तरह दिन काटते हैं? इस तरह के अनेकों प्रश्नों से जब नन्दराय जी ने मधुर वाणी से उनकी कुशल क्षेम के बारे में पूछा तो अक्रूर जी की सारी थकान दूर हो गई|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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