हम अपना जीवन नष्ट कर रहे हैं
अतएव हमें अपनी इन्द्रियों को भौतिक सुख बढ़ाने के लिए प्रेरित करने के इच्छुक न बनकर कृष्णभावनामृत का अभ्यास करके आध्यात्मिक सुख पाने का प्रयास करना चाहिए। जैसा कि प्रह्लाद महाराज कहते हैं, "यद्यपि इस मानव शरीर में तुम्हारा जीवन क्षणिक हैं किन्तु है अत्यन्त मूल्यवान । अतएव अपने भौतिक इन्द्रियभोग को बढ़ाने का प्रयास करने की अपेक्षा तुम्हारा कर्तव्य होता है कि अपने कायों को किसी न किसी तरह कृष्णभावनामृत से जोड़ा। - मनुष्य शरीर से ही उच्चतर बुद्धि आती है। चूंकि हमें उच्चतर चेतना मिली है इसलिए जीवन में हमें उच्चतर आनन्द के लिए प्रयत्न करना चाहिए यह आध्यात्मिक आनन्द है। इस आध्यात्मिक आनन्द को कैसे प्राप्त किया जा सकता है। मनुष्य को चाहिए कि वह भगवान् की सेवा में लीन रहे क्योंकि वे ही भक्ति रूपी आनन्द प्रदान करने वाले हैं। हमें अपना ध्यान कृष्ण के चरणकमलों को प्राप्त करने में लगाना चाहिए जो हमें इस भौतिक जगत से उद्धार करने वाले हैं।किन्तु क्या हम इस जीवन में आनन्द नहीं ले सकते और अगले जीवन में कृष्ण की सेवा में अपने को लगा दें? प्रह्लाद महाराज का उत्तर है, "अब हम भौतिक पाश में हैं। इस समय मुझे यह शरीर मिला है किन्तु कुछ वर्षों बाद मैं यह शरीर त्याग कर अन्य शरीर धारण करने के लिए बाध्य होऊँगा। एक बार एक शरीर पा लेने पर तथा अपने शरीर की इन्द्रियों के आदेशानुसार भोग करने पर हम दूसरे शरीर के लिए तैयार होते हैं और यह दूसरा शरीर अपनी इच्छा के अनुसार प्राप्त करते हैं।" इसकी कोई गारंटी नहीं हैं कि आपको मनुष्य शरीर ही मिले| यह तो आपके कर्म पर निर्भर करेगा। यदि आप देवता की तरह कर्म करेंगे तो आपको देवता का शरीर प्राप्त होगा और यदि आप कुत्ते की तरह कर्म करेंगे तो कुत्ते का शरीर मिलेगा। मृत्यु के समय आपका भाग्य आपके हाथ में नहीं होता यह प्रकृति के हाथ में होता है। यह हमारा धर्म नहीं की हम यह सोचें कि हमें गला कौन सा शरीर मिलेगा। इस समय तो हम इतना ही समझ ले कि यह मनुष्य शरीर हमारी आध्यात्मिक चेतना, हमारे कृष्णभावनामृत को विकसित करने का अच्छा सुअवसर है। इसलिए हमें तुरन्त कृष्ण की सेवा में जुट जाना चाहिए। तभी हम प्रगति कर सकेंगे।
(TO BE COUNTINUE)
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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