कर्मी और ज्ञानी के प्रति कृपा से गौण भक्ति पथ का विधान
भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु जी को नामाचार्य हरिदास ठाकुर जी कहते हैं कि हे गौरहरि ! आप दया के सागर हो और जीवों के ईश्वर हो | कर्मी, ज्ञानी और जीवों के उद्धार के लिए भी आप तत्पर रहते हो | कर्म - मार्ग और ज्ञान -मार्ग पर चलने वाले पथिक का भी उद्धार करने के लिए आप यतन करते हो | उस पथ पथिकों के मंगल की चिन्ता करते हुए आपने एक गौण भक्ति - मार्ग भी बना रखा है | (क्रमशः)
(हरिनाम चिन्तामणि)
पहला अध्याय
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