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बुधवार, 7 मार्च 2018

कर्मी और ज्ञानी के प्रति कृपा से गौण भक्ति पथ का विधान

कर्मी और ज्ञानी के प्रति कृपा से गौण भक्ति पथ का विधान
     भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु जी को नामाचार्य हरिदास ठाकुर जी कहते हैं कि हे गौरहरि ! आप दया के सागर हो और जीवों के ईश्वर हो | कर्मी, ज्ञानी और जीवों के उद्धार के लिए भी आप तत्पर रहते हो | कर्म - मार्ग और ज्ञान -मार्ग पर चलने वाले पथिक का भी उद्धार करने के लिए आप यतन करते हो | उस पथ पथिकों के मंगल की चिन्ता करते हुए आपने एक गौण भक्ति - मार्ग भी बना रखा है | (क्रमशः) 
(हरिनाम चिन्तामणि)
पहला अध्याय
पृष्ठ 7
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मंगलवार, 6 मार्च 2018

भक्ति - उन्मुखी सुकृति

भक्ति - उन्मुखी सुकृति
     कर्मोन्मुखी, ज्ञानोंन्मुखी व भक्ति उन्मुखी -- ये तीन प्रकार की सुक्रितियाँ होती हैं | इनमें भक्ति उन्मुखी सुकृति ही प्रधान है, जिसके फलस्वरूप जीव साधू- भक्तों की संगति को प्राप्त करता है | श्रद्धावान होकर कोई जीव श्रीकृष्ण के भक्तों का संग प्राप्त करता है तब उस जीव की साधू - संग के प्रभाव से हरिनाम में रूचि उत्पन्न हो जाती है तथा साथ ही उसके हृदय में जीवों के प्रति दया का भाव उमड़ पड़ता है | इस प्रकार साधू - संग के फल से उस श्रद्धावान जीव को भक्ति पथ की प्राप्ति व इस सुन्दर कल्याणकारी पथ पर चलने का सौभाग्य प्राप्त होता है | (क्रमशः) 
(हरिनाम चिन्तामणि)
पहला अध्याय
पृष्ठ 7
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सोमवार, 5 मार्च 2018

श्रीकृष्ण - बहिर्मुख जीव

श्रीकृष्ण - बहिर्मुख जीव 
वैसे देखा जाये तो कर्मी और ज्ञानी दोनों ही श्रीकृष्ण से बहिर्मुख हैं | ये जीव कभी भी श्रीकृष्ण की दासता को अर्थात श्रीकृष्ण की सेवा के सुख का आस्वादन प्राप्त नहीं कर सकते | (क्रमशः)
(हरिनाम चिन्तामणि)
पहला अध्याय
पृष्ठ 6
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रविवार, 4 मार्च 2018

ब्रह्म क्या वस्तु है

ब्रह्म क्या वस्तु है
     श्रीहरिदास ठाकुर जी कहते हैं- हे गौरहरि ! वह ब्रह्म आपके अंगों की कान्ति ( चमक ) है, जोकि ज्योतिर्मय है | विरजा नदी के उस पार जो ज्योतिर्मय ब्रह्म - धाम है, उसमे महाज्ञानी लीन हो जाते हैं | इनके अलावा असुरों का भगवान् विष्णु अपने हाथों से संहार करते हैं वे सब असुर भी माया से पार होकर उसी ब्रह्म में लीन हो जाते हैं | (क्रमशः)
(हरिनाम चिन्तामणि)
पहला अध्याय
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शनिवार, 3 मार्च 2018

इस अवस्था से उद्धार का उपाय

इस अवस्था से उद्धार का उपाय
     सौभाग्यवश यदि कोई जीव साधू - संग प्राप्त करके यह जान लेता है कि वह भगवान् श्रीकृष्ण का नित्य -दास है तो इस महान यज्ञ को प्राप्त करके वह माया से पार हो जाता है परन्तु यह साधू -संग पूर्व-जन्मों की सुकृति के अनुसार ही मिलता है | तुच्छ कर्मकाण्ड में यह ज्ञान नहीं बताया गया है |

शुक्रवार, 2 मार्च 2018

प्राकृत शुभ कर्मकाण्ड

प्राकृत शुभ कर्मकाण्ड 
     माया के वैभव में फँसकर जब जिस प्रकार का भी अनित्य सुख चाहता है, आपकी दया से वह उसे अनायास ही पा लेता है | उसी सुख को प्राप्त करने के लिए ही धर्म - कर्म, यज्ञ, योग, होम व व्रत इत्यादि शुभ कर्म बनाए गए हैं | ये सभी शुभ कर्म सदा ही जड़मय (प्राकृत) रहते हैं | चिन्मय प्रकृति इन सब से कभी नहीं मिलती | इन शुभ कर्मों को करने से दुनियावी नाशवान फल ही प्राप्त होते हैं | इनसे तो स्वर्ग आदि उच्च लोक तथा सांसारिक भोगों से मिलने वाला सुख ही मिलता है | आत्मा की शान्ति इनसे नहीं मिलती | इन सबका प्रयास करना अतिशय भ्रान्तिमय है | इन सब अनित्य उपायों को करने से अनित्य सुख ही मिलते हैं | (क्रमशः)
(हरिनाम चिन्तामणि)
पहला अध्याय
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गुरुवार, 1 मार्च 2018

तब भी श्रीकृष्ण की दया

तब भी श्रीकृष्ण की दया
श्रीहरिदास ठाकुर जी भगवान् श्रीचैतन्य महाप्रभु जी को कहते हैं कि हे प्रभु ! मेरा ऐसा विश्वास है कि आप विभु हो और ये जीव आपका ही वैभव हैं | ये आपके नित्य दास हैं | अपने दास के मंगल की चिन्ता करना आपका स्वभाव है | आपके दास अपने सुख की खोज करते हुए जो भी आपसे माँगते हैं, आप कल्पतरु की भान्ति अपनी कृपा रुपी बरसात को बरसाते हुए उन्हें प्रदान करते रहते हो | (क्रमशः)
(हरिनाम चिन्तामणि)
पहला अध्याय
पृष्ठ 6