प्राकृत शुभ कर्मकाण्ड
माया के वैभव में फँसकर जब जिस प्रकार का भी अनित्य सुख चाहता है, आपकी दया से वह उसे अनायास ही पा लेता है | उसी सुख को प्राप्त करने के लिए ही धर्म - कर्म, यज्ञ, योग, होम व व्रत इत्यादि शुभ कर्म बनाए गए हैं | ये सभी शुभ कर्म सदा ही जड़मय (प्राकृत) रहते हैं | चिन्मय प्रकृति इन सब से कभी नहीं मिलती | इन शुभ कर्मों को करने से दुनियावी नाशवान फल ही प्राप्त होते हैं | इनसे तो स्वर्ग आदि उच्च लोक तथा सांसारिक भोगों से मिलने वाला सुख ही मिलता है | आत्मा की शान्ति इनसे नहीं मिलती | इन सबका प्रयास करना अतिशय भ्रान्तिमय है | इन सब अनित्य उपायों को करने से अनित्य सुख ही मिलते हैं | (क्रमशः)
(हरिनाम चिन्तामणि)
पहला अध्याय
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