श्रीकृष्ण की चिद-विभूति ही शुद्ध सत्व है
श्रीकृष्ण के चिद-वैभव स्वरूप--जो श्रीकृष्ण के नाम, रूप, गुण, धाम, लीला व परिकर आदि हैं, उनमें माया का विकार नहीं रहता है क्योंकि वह जड़ से परे रहते हैं | ये विष्णु-तत्व, शुद्ध सत्व का सार होता है | इस शुद्ध सत्व में रजोगुण और तमोगुण की कोई गन्ध भी नहीं रहती | यह सभी जानते हैं कि मिश्र-सत्व रजोगुण और तमोगुण मिले होते हैं |श्रीगोविन्द, श्रीबैकुण्ठनाथ, श्रीनारायण, श्री करणोदशायी महाविष्णु, गर्भोदशायी विष्णु, क्षीरोदशायी विष्णु, और जितने भी 'स्वांश' नाम से परिचित भगवान के अवतार हैं, वे सभी शुद्ध-सत्व-स्वरूप हैं तथा विष्णु-तत्व का सार-स्वरूप हैं | यह सब विष्णु-तत्व, गोलोक में, बैकुण्ठ में, कारण-समुद्र में अथवा इस जड़-जगत में प्रवेश होने पर भी माया के अधीश्वर रहते हैं | विष्णु नाम ही विभु हैं, ये सभी देवताओं के ईश्वर हैं | (क्रमशः)
(हरिनाम चिन्तामणि)
अध्याय 1
पृष्ठ 5