तीन प्रकार के वैभव
शक्ति का जो प्रकाश है, उसी को प्रकाश कहा जाता है | वैभव ही केवल अनुभव में आता है | श्रीहरिदास ठाकुर जी कहते हैं कि हे गौरसुन्दर ! तुम्हारा वैभव शास्त्र में चिद-वैभव, अचिद-वैभव (माया-वैभव) तथा जीव-वैभव -- इन तीन रूपों में वर्णित है |
चिद-वैभव
अनन्त-वैकुण्ठ आदि जितने भी श्रीकृष्ण के धाम हैं, 'गोविन्द', 'श्रीकृष्ण', 'हरि' आदि जितने भी भगवान् के नाम हैं, द्विभुज-वंशीधर, द्विभुज मुरलीधर, धनुर्धर, चतुर्भुज नारायण इत्यादि जितने भी भगवान् के स्वरूप हैं, भक्त-वात्सल्य इत्यादि जितने भी श्रीकृष्ण के मनोहर गुण हैं, व्रज में रासलीला, नवद्वीप में नाम संकीर्तन, इस प्रकार जितनी भी श्रीकृष्ण की लीलाएं हैं-- ये सभी भगवान् श्रीकृष्ण के अप्राकृत चिद-वैभव हैं | प्राकृत जगत में आने पर भी ये प्राकृत नहीं हैं, ये सभी अप्राकृत हैं या यूँ कहें कि ये उनके चिन्मय-वैभव हैं | श्रीकृष्ण के ये सब चिमय धाम, नाम, रूप, गुण व लीला इत्यादि सभी विष्णु-तत्व का सार स्वरूप हैं | वेद इन सभी को विष्णुपद कहकर बार-बार इनकी महिमा वर्णन करते रहते हैं | (क्रमशः)
श्रीहरिनाम चिन्तामणि
पहला अध्याय
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