मायाधीश-प्रभु, शुद्ध सत्वमय हैं तथा वे माया के भी ईश्वर हैं जबकि ब्रह्मा, शिव इत्यादि सभी त्रिगुणात्मक देवता हैं, ये सभी मिश्र-तत्व हैं |
चिद-वैभव विस्मृति
श्रीहरिदास ठाकुर जी भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी को कहते हैं कि जितने भी विष्णु-तत्व और विष्णु धाम की लीलाएं हैं वे सभी आपके चिद-वैभव हैं |
अचिद-वैभव अथवा माया तत्व
विरजा नदी जो कि भौतिक-जगत और आध्यात्मिक-जगत की सीमा है, के इस पार चौदह लोकों में जो कुछ भी है सभी अचिद-वैभव हैं | इसे माया का वैभव भी कहते हैं अथवा इन्हें देवी-धाम भी कहा जाता है | इनमें जो कुछ भी बना है, वह आकाश, मिटटी, जल, वायु तथा अग्नि नामक पंच-महाभूतों एवं मन, बुद्धि व अहंकार से बना है | श्रीहरिदास ठाकुर जी कहते हैं-- हे जगन्नाथ गौरहरि ! भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्गलोक, महर्लोक, जनलोक तपलोक और सत्यलोक नामक ऊपर के लोक तथा अतल-वितल आदि नीचे के सातों लोक आपकी माया के वैभव हैं | (क्रमशः)
(हरिनाम चिंतामणि)
पहला अध्याय
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