सत्य यह है की आपका चिद-वैभव तो अपने आप में पूर्ण-तत्व है, चेतन-तत्व है, जबकि माया-वैभव तो इस चिद-वैभव की छाया है | आकार की दृष्टि से देखा जाए तो यह जीव अति अणु-स्वरूप है परन्तु चिन्मय होने के कारण जीव के गठन होने में ही स्वतन्त्रता है तथा संख्या में ये जीव अनन्त हैं एवं सुख की प्राप्ति करना ही इन जीवों का लक्ष्य होता है |
मुक्त-जीव
उस नित्य सुख को प्राप्त करने के लिए जिन्होंने आनन्द-स्वरूप श्रीकृष्ण का वरण किया है, वे तो श्रीकृष्ण के पार्षद बन गए तथा मुक्त जीवों के रूप में रहने लगे | (क्रमशः)
(हरिनाम चिन्तामणि)
पहला अध्याय
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