बद्ध और बहिर्मुख - जीव
इनके अलावा जिन जीवों ने अपने सुख की भावना से भगवान् के पीछे रहने वाली माया का वरण किया अर्थात अपने सुख के लिए जिन्होंने माया के भोगों की कामना की वे सभी जीव नित्य काल के लिए श्रीकृष्ण से विमुख हो गए और उन्होंने माया के इस देवी - धाम में माया के द्वारा बना शरीर प्राप्त किया | अब यहाँ वे भगवान् से विमुख जीव पाप - पुण्य रुपी चक्कर में पड़कर स्थूल व सूक्ष्म शरीर धारण करके इस संसार में भटक रहे हैं | वे कभी स्वर्ग आदि लोकों में तो कभी नर्क की प्राप्ति करते हुए चौरासी लाख योनियों को भोगते हुए भटकते रहते हैं | (क्रमश:)
(हरिनाम चिन्तामणि)
पहला अध्याय
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