मैं कृष्ण को अत्यधिक चाहता हूँ
यदि आप विदेश में होते हैं तो आप अपने घर को, अपने परिवार वालों को तथा अपने मित्रों को भूल सकते हैं जो आपको अत्यन्त प्रिय हैं। किन्तु यदि आपको एकाएक उनकी याद दिलाई जाय तो आप अभिभूत हो उठेगे “मैं उनसे कैसे मिल सकेंगा?" सैन् फ्रांसिस्को में हमारे एक मित्र ने मुझसे बतलाया कि वह बहुत पहले अपने बच्चों को छोड़कर दूसरे देश में चला गया था। हाल ही में उसके जवान पुत्र का पत्र आया है। इससे तुरन्त ही पिता को उसके प्रति अपने स्नेह का स्मरण हो आया और उसने कुछ धन उसके पास भेज दिया। यह स्नेह स्वतः उत्पन्न हुआ यद्यपि वह अपने पुत्र को इतने वर्षों से भूला हुआ था। इसी प्रकार का के प्रति हमारा स्नेह इतना घनिष्ट है कि ज्योंही कृष्णभावनामृत का स्पर्श होता है कि हमें तुरन्त ही कृष्ण से अपने सम्बन्ध की याद ताजी हो जाती है।प्रत्येक व्यक्ति का भगवान् कृष्ण से कुछ न कुछ विशेष सम्बन्ध होता है जिसे वह भूल चुका है। किन्तु ज्यों-ज्यों हम कृष्णभावनाभावित होते जाते हैं त्यों-त्यों क्रमशः कृष्ण के साथ हमारे सम्बन्ध की पुरानी चेतना ताजी हो उठती है। और जब हमारी चेतना वास्तव में सुस्पष्ट हो जाती है तो हम कृष्ण के साथ अपने विशेष सम्बन्ध को समझ सकते हैं। कृष्ण के साथ हमारा सम्बन्ध पुत्र या दास के रूप में, मित्र के रूप में, माता-पिता के रूप में अथवा प्रेमिका या प्रेमी के रूप में हो सकता है। ये सारे सम्बन्ध इस भौतिक जगत में विकृत रूप में प्रतिबिम्बित होते हैं। किन्तु कृष्णभावनामृत के पद को प्राप्त करते ही कृष्ण से हमारा सम्बन्ध फिर से जागृत हो उठता है।
(TO BE COUNTINUE)
*****************************************************
भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
*****************************************************
Kindly Visit:
*************
Our Blog: www.hamarekrishna.blogspot.in
Our Facebook Timeline: www.facebook.com/wokgrp
Our Facebook Group: www.facebook.com/groups/worldofkrishnagroup
Our Facebook Page: https://www.facebook.com/wokgroup