हम अपना जीवन नष्ट कर रहे हैं
आखिर कब तक हम ऐसा करें? जब तक यह शरीर कर्म कर सकता है। हम यह नहीं जानते कि यह कब काम करना बन्द कर देगा । महान संत परीक्षित महाराज को तो सात दिन की मोहलत मिली थी, “एक सप्ताह में तुम्हारा शरीर-पात हो जायेगा।” किन्तु हम नहीं जानते कि हमारा शरीर-पात कब हो जायेगा। हम जब भी सड़क पर होते हैं तो अकस्मात् दुर्घटना हो सकती है। हमें सदैव तैयार रहना चाहिए। मृत्यु सदैव उपस्थित रहती है। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हर कोई मर रहा है किन्तु मैं तो जीवित रहुँगा । यदि हर कोई मरता है तो फिर आप क्यों जीवित रहेंगे? आपके बाबा मरे हैं, पर बाबा मरे हैं, अन्य सम्बन्धी गण भी मरे हैं तो फिर आप क्यों जीवित रहेंगे? आप भी मरेंगे। आपकी सन्तानें भी मरेंगी। अतएव इसके पूर्व कि मृत्यु आए, जब तक यह मानव बुद्धि है हम कृष्णभावनामृत में जुट जाएँ। प्रह्लाद महाराज की यही संस्तुति है। | हम नहीं जानते कि यह शरीर कब काम करना बन्द कर दे अतएव हमें तुरन्त ही कृष्णभावनामृत में प्रवृत्त होकर उसी के अनुसार कर्म करना चाहिए। “किन्तु यदि मैं तुरन्त कृष्णभावनामृत में लग जाऊं तो मेरी जीविका कैसे चलेगी?” इसकी व्यवस्था है। मुझे आपल्लोरों से अपने एक शिष्य के विश्वास के बारे में बताते हुए प्रसन्नता हो रही हैं। उससे असहमत शिष्य ने कहा, “तुम इसकी देखरेख नहीं करते कि प्रतिष्ठान को कैसे चलाया जाय।” इसपर उसने उत्तर दिया “अरे! कृष्ण सब पूरा करेंगे।” यह अति उत्तम विचार है। इसे सुनकर मैं हर्षित हुआ । यदि कुत्ते, बिल्ली तथा सुअर भोजन पा सकते हैं तो क्या कृष्ण हमारे भोजन का भी प्रबन्ध नहीं करेंगे? यदि हम पूरी तरह कृष्णभावनाभावित हों और उनकी सेवा करते हों। क्या कृष्ण कृतघ्न हैं? नहीं।भगवद्गीता में भगवान् कहते हैं, “हे अर्जुन! मैं सबों पर समभाव रखता हैं। किसी से ईर्ष्या नहीं करता, और न ही कोई मेरा विशेष मित्र है किन्तु जो कृष्णभक्ति में लगा रहता है उसका मैं विशेष ध्यान रखता हूँ। चूंकि एक छोटा बालक अपने माता-पिता पर पूरी तरह आश्रित रहता हैं अतएव वे उस बालक पर विशेष ध्यान रखते हैं। यद्यपि माता-पिता सारे बालकों पर समान रूप से दयालु होते हैं किन्तु ये छोटे छोटे बालक, जो सदैव "माँ, माँ” चिलाते रहते हैं, उनपर विशेष ध्यान दिया जाता है। “क्या है मेरे लाल?" हाँ। यह स्वाभाविक हैं।
(TO BE COUNTINUE)
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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