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मंगलवार, 9 अक्टूबर 2018

प्रहलाद महाराज जी के उपदेश (पारिवारिक मोह)

पारिवारिक मोह
  कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य को तुरन्त ही कृष्णभावनामृत प्रारम्भ कर देना चाहिए। मान लीजिये कि कोई यह सोचता है, मैं अपना यह खेलकुद का जीवन बिताने के बाद जब बूढ़ा हो जाऊँगा और मेरे पास करने के लिए कुछ नहीं होगा तो मैं कृष्णभावनामृत संघ जाकर कुछ सुनँगा।” निश्चय ही उस समय आध्यात्मिक जीवन बिताया जा सकता है किन्तु इसकी गारंटी कहाँ है कि कोई व्यक्ति वृद्धावस्था तक जीवित रहेगा? मृत्यु किसी भी समय आ सकती है। इसलिए आध्यात्मिक जीवन को टालना अत्यन्त खतरनाक है। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि कृष्णभावनामृत के सुअवसर का लाभ उठावें । यही इस संध का प्रयोजन है कि हरएक को जीवन की किसी भी अवस्था में कृष्णभावनामृत का अवसर प्रदान किया जाय। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे का कीर्तन करने से प्रगति काफी तेज हो जाती है। यही इसका तुरन्त फल है।
  हम उन समस्त देवियों एवं सज्जनों से, जो कि हमारा व्याख्यान सुनते हैं या हमारा साहित्य पढ़ते हैं, अनुरोध करेंगे कि घर पर फुरसत के समय हरे कृष्ण कीर्तन करें और हमारी पुस्तकें पढ़ें । यही हमारा अनुरोध है । हमें विश्वास है कि आपको यह विधि अत्यन्त सुखकर तथा प्रभावशाली लगेगी।
(TO BE COUNTINUE)
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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