हम अपना जीवन नष्ट कर रहे हैं
यदि आप उन कृष्ण पर पूर्णतया आश्रित है, जो ८४ लाख योनियों के जीवों को भोजन प्रदान करते हैं, तो फिर वे आपको भोजन क्यों नहीं देगे? यह धारणा समर्पण का लक्षण हैं। किन्तु हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि कृष्ण मुझे भोजन दे रहे हैं अतः मैं अब सो || मापको बिना भय के कार्य करना है। आपको कृष्ण के लालन-पालन तथा संरक्षण पर पूरा विश्वास रखते हुए आप को कृष्णभावनामृत में पूरी तरह से लग जाना चाहिए। आइये हम अपनी आयु की गणना करें। इस युग में ऐसा कहा जाता है कि हम अधिक से अधिक एक सौ वर्ष जीवित रह सकते हैं। पहले सतयुग में लोग १ लाख वर्षों तक जीवित रहते थे। अगले युग त्रेता में वे १० हजार वर्षों तक जीते थे और उसके बाद वाले युग, द्वापर में १ हजार वर्षों तक। अब इस कलियुग में यह अनुमान १०० वर्ष का है। किन्तु ज्यों ज्यों कलियुग अग्रसर होता चलेगा, हमारी आयु और भी घटती जायेगी। यह हमारी आधुनिक सभ्यता की तथाकथित उन्नति हैं । हमें इसका बड़ा गर्व रहता है कि हम सुखी हैं और अपनी सभ्यता में सुधार ला रहे हैं। किन्तु इसका परिणाम यह है कि हम भौतिक जीवन का भोग करने का प्रयास तो करते हैं किन्तु हमारी आयु कम होती जा रही है।
यदि हम यह मान लें कि एक मनुष्य एक सौ वर्षों तक जीवित रहता है और यदि उसे आध्यात्मिक जीवन का कोई ज्ञान नहीं है तो उसका आधा जीवन रात में सोने तथा सम्भोग करने में बीत जाता है। उसकी रुचि अन्य किसी कार्य में नहीं रहती। तो दिन के समय वह क्या करता है? “कहाँ है रुपया? कहाँ है रुपया? मुझे इस शरीर को बनाये रखना है ।" और जब उसके पास धन आ जाता है तो वह कहता है कि क्यों न मैं इसका उपयोग अपनी पत्नी और बच्चों पर करूँ? तो फिर उसकी आध्यात्मिक अनुभूति कहाँ रही? रात में वह अपना समय सोने में तथा संभोग करने में बिताता है और दिन में धन अर्जित करने के लिए वह कठोर श्रम करता है। क्या जीवन में उसका यही उद्देश्य है? ऐसा जीवन कितना भयावह है।
(TO BE COUNTINUE)
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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