हम अपना जीवन नष्ट कर रहे हैं
साधारण व्यक्ति बालपन को खेल में बिताता हैं। आप बीस वर्षों तक इसी तरह करते रह सकते हैं। तत्पश्चात् जब आप वृद्ध होते" हैं, तो फिर से बीस वर्षों तक कुछ नहीं कर सकते। जब व्यक्ति वृद्ध हो जाता है तो उसकी इन्द्रियाँ काम नहीं कर सकतीं। आपने अनेक वृद्ध व्यक्तियों को देखा होगा, वे विश्राम करने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं करते। अभी अभी हमें अपने एक शिष्य का पुत्र मिला है जिसमें सूचित किया गया है कि उसकी दादी को लकवा मार गया है और वह गत साढ़े तीन वर्षों से कष्ट भोग रही है। अतः वृद्धावस्था में अस्सी वर्ष की आयु पार करते ही सारा काम ठप्प हो जाता है। इसलिए प्रारम्भ से लेकर बीस वर्ष की आयु तक सारा का सारा समय नष्ट हो जाता है और यदि आप एक सौ वर्ष तक जीवित भी रहें, तो जीवन की अन्तिम अवस्था के और बीस वर्ष नष्ट हो जाते हैं। इस तरह आपके जीवन के चालीस वर्ष यों ही नष्ट हो जाते हैं। बीच की आयु में यौन-क्षुधा इतनी प्रबल होती है कि इसमें भी बीस वर्ष नष्ट हो जाते हैं। इस तरह बीस, फिर बीस, तब बीस कुल साठ वर्ष नष्ट हो जाते हैं। जीवन का विश्लेषण प्रह्लाद महाराज द्वारा दिया गया है। हम अपने जीवन को कृष्णभावनामृत में अग्रसर करने में न लगाकर उसे चौपट कर रहे हैं।
(TO BE COUNTINUE)
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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