वर्ल्ड ऑफ़ कृष्ण ब्लॉग में आपका हार्दिक स्वागत है । श्री कृष्ण जी के ब्लॉग में आने के लिए आपका कोटि कोटि धन्यवाद । श्री कृष्ण जी की कृपा आप सब पर सदैव बनी रहे ।

वर्ल्ड ऑफ़ कृष्ण में आपकी आगन्तुक संख्या

गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018

प्रहलाद महाराज जी के उपदेश (पारिवारिक मोह)

पारिवारिक मोह
  प्रहलाद महाराज ने अपने मित्रों को बतलाया, “तुम्हें तुरन्त ही कृष्णभावनामृत शुरू कर देना चाहिए।” सारे बालक नास्तिक भौतिकतावादी परिवारों में जन्में थे किन्तु सौभाग्यवश उन्हें प्रहलाद की संगति प्राप्त थी जो अपने जन्म से ही भगवान के महान भक्त थे। जब भी उन्हें अवसर मिलता, और जब अध्यापक कक्षा के बाहर होता तो वे कहा करते, "मित्रो! आओ, हम हरे कृष्ण कीर्तन करें। यह कृष्णभावनामृत शुरू करने का समय है।"
    किन्तु जैसा कि हमने अभी अभी कहा, किसी बालक ने कहा होगा, “किन्तु हम अभी बच्चे हैं। हमें खेलने दीजिये । हम तुरन्त मरने वाले नहीं, अतः बाद में कृष्णभावनामृत शुरू करेंगे।” लोग यह नहीं जानते कि कृष्णभावनामृत सर्वोच्च आनन्द है। वे सोचते हैं कि जो बालक तथा बालिकाएँ इस कृष्णभावनामृत में सम्मिलित हुए हैं। वे मूर्ख हैं। ये प्रभुपाद के प्रभाव से इसमें सम्मिलित हुए हैं और उन्होंने भोगने योग्य अपनी सारी वस्तुएँ छोड़ दी हैं। किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। वे सभी बुद्धिमान, शिक्षित बालक बालिकाएँ हैं और अत्यन्त सम्मानित परिवारों से आए हैं। वे मूर्ख नहीं हैं। वे हमारे संघ में सचमुच ही जीवन का आनन्द ले रहे हैं अन्यथा इस आन्दोलन के लिए वे अपना मूल्यवान् समय अर्पित न कर देते। वस्तुतः कृष्णभावनामृत में आनन्दमय जीवन बीतता है लेकिन लोगों को इसका पता नहीं है। वे कहते हैं, “इस कृष्णभावनामृत से क्या लाभ है?” जब मनुष्य इन्द्रियतृप्ति में फँसकर बड़ा होता है तो उसमें से निकल पाना बहुत कठिन होता है। इसलिए वैदिक नियमों के अनुसार पाँच वर्ष की अवस्था से ही विद्यार्थी जीवन में बालकों को आध्यात्मिक जीवन के विषय में शिक्षा दी जाती हैं। इसे ब्रह्मचर्य कहते हैं | एक ब्रह्मचारी परम चेतना कृष्णभावनामृत या ब्रहा अनुभूति प्राप्त करने में अपना सारा जीवन अर्पित कर देता है। । ब्रह्मचर्य के अनेक विधि-विधान हैं। उदाहरणार्थ, किसी का पिता कितना ही धनी क्यों न हो, एक ब्रह्मचारी अपने गुरु के निर्देशन में प्रशिक्षित होने के लिए उसकी शरण में एक दास की तरह आता है। यह कैसे सम्भव है? हमें इसका वास्तविक अनुभव हो रहा है कि अत्यन्त सम्मानित परिवारों के बहुत ही अच्छे बालक यहाँ पर किसी भी तरह का कार्य करने में संकोच नहीं करते। वे थालियाँ धोते हैं, फर्श साफ करते हैं, वे हर कार्य करते हैं। एक शिष्य की माता को अपने बेटे पर आश्चर्य हुआ, जब उसने घर का दौरा किया। इसके पूर्व वह दुकान तक भी नहीं जाता था किन्तु अब वह चौबीसों घन्टे काम में लगा रहता है। जब तक आनन्द की अनुभूति न हो, भला कोई व्यक्ति कृष्णभावनामृत जैसी विधि में क्यों कर लगने लगा? यह केवल हरे कृष्ण कीर्तन करने से ही है। यही हरेकृष्ण मन्त्र हमारी एकमात्र निधि है। मनुष्य एकमात्र कृष्णभावनामृत से प्रसन्न रह सकता हैं। वस्तुतः यह आनन्दपूर्ण जीवन है। किन्तु बिना प्रशिक्षित हुए ऐसा जीवन बिताया नहीं जा सकता।
(TO BE COUNTINUE)
*****************************************************
भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
*****************************************************
World Of Krishna
Kindly Visit:
*************
Our Blog: www.hamarekrishna.blogspot.in
Our Facebook Timeline: www.facebook.com/wokgrp
Our Facebook Group: www.facebook.com/groups/worldofkrishnagroup
Our Facebook Page: https://www.facebook.com/wokgroup