पारिवारिक मोह
किन्तु यदि कोई विद्यार्थी कृष्णभावनामृत के सार को ग्रहण नहीं कर पाता तो उसे सुन्दर पत्नी से विवाह करने और शान्तिपूर्ण गृहस्थ जीवन बिताने की अनुमति दी जाती है। चूंकि उसे कृष्णभावनामृत के मूल सिद्धान्तों का प्रशिक्षण दिया जा चुका है इसलिए वह इस भौतिक जगत में नहीं फंसेगा। जो व्यक्ति सादा जीवन बिताता है वह पारिवारिक जीवन में भी कृष्णभावनामृत में प्रगति कर सकता है।अतएव पारिवारिक जीवन की निन्दा नहीं की जाती। किन्तु यदि मनुष्य अपनी आध्यात्मिक पहचान (सत्ता) भूल कर सांसारिक व्यापारों में फंस जाता है तो उसके जीवन का उद्देश्य नष्ट हो जाता है। यदि कोई यह सोचता है कि मैं कामवासना से अपने को नहीं बचा सकता तो उसे चाहिए कि वह विवाह कर ले। इसकी संस्तुति है। लेकिन अवैध मैथुन न किया जाय। यदि कोई व्यक्ति किसी स्त्री को चाहता है या कोई स्त्री किसी पुरूष को चाहती है तो उन्हें चाहिए कि विवाह करके कृष्णभावनामृत में जीवन बितायें। | जो व्यक्ति बचपन से ही कृष्णभावनामृत में प्रशिक्षित किया जाता है, भौतिक जीवन शैली के प्रति उसका झुकाव कम हो जाता है और पचास वर्ष की आयु में वह ऐसे जीवन का परित्याग कर देता है। वह किस तरह परित्याग करता है? पति तथा पत्नी घर छोड़ कर एक साथ किसी तीर्थयात्रा पर चले जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति पच्चीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष की आयु तक पारिवारिक जीवन में रहा है। तो तब तक उसकी कुछ सन्तानें अवश्य ही बड़ी हो जाती हैं। इस तरह पचास वर्ष की आयु में वह अपने पारिवारिक मामले अपने गृहस्थ जीवन बिताने वाले पुत्रों में से किसी को सौंप कर अपनी पत्नी के साथ पारिवारिक बन्धनों को भुलाने के लिए किसी तीर्थस्थान की यात्रा पर जा सकता है। जब वह पुरुष पूरी तरह विरक्त हो जाता है तो वह अपनी पत्नी से अपने पुत्रों के पास वापस चले जाने के लिए कहता है और स्वंय अकेला रह जाता है। यही वैदिक प्रणाली है। हमें क्रमशः आध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ने के लिए अवसर देना चाहिए । अन्यथा यदि हम सारे जीवन भौतिक चेतना में ही बँधे रहे तो हम अपनी कृष्णचेतना में पूर्ण नहीं बन सकेंगे और इस मानव जीवन के सुनहरे अवसर को हाथ से चला जाने देंगे।
तथाकथित सुखी पारिवारिक जीवन का अर्थ है कि हमारी पत्नी तथा हमारी सन्तानें बहुत ही प्यारी हैं। इस तरह हम जीवन का आनन्द उठाते हैं। किन्तु हम यह नहीं जानते होते कि यह आनन्द या भोग मिथ्या है और मिथ्या आधार पर टिका है। हमें पलक झाँपते । इस भोग को त्यागना पड़ सकता है। मृत्यु हमारे वश में नहीं है। भगवद्गीता से हम यह सीखते हैं कि जो व्यक्ति अपनी पत्नी पर अधिक अनुरक्त रहता है तो मरने पर अगले जन्म में उसे स्त्री का शरीर प्राप्त होगा। यदि पत्नी अपने पति पर अत्यधिक अनुरक्त रहती है तो अगले जन्म में उसे पुरुष का शरीर प्राप्त होगा। इसी तरह, यदि आप पारिवारिक व्यक्ति नहीं हैं बल्कि कुत्तों-बिल्लियों से अधिक लगाव रखते हैं तो अगले जीवन में आप कुत्ता या बिल्ली होंगे। ये कर्म के नियम हैं।
(TO BE COUNTINUE)
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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