पारिवारिक मोह
श्रीमद्भागवत द्वारा यह पुष्टि होती है कि भौतिक भोग नर तथा नारी के यौन-मिलाप से अधिक कुछ नहीं है। प्रारम्भ में कोई लड़का सोचता है, “वाह! वह लड़की कितनी सुन्दर है” और लड़की कहती है कि लड़का उत्तम है। जब वे मिलते हैं तो भौतिक प्रदूषण अधिक स्पष्ट हो जाता है। और जब वे यौन का आनन्द लूटते हैं तो वे पूरी तरह लिप्त हो जाते हैं। सो कैसे? जैसे ही लड़का तथा लड़की विवाहित हो जाते हैं वे एक कमरा चाहते हैं। फिर उनके बच्चे उत्पन्न होते हैं। तब उनके भी बच्चे होते हैं। जब बच्चा जन्म ले लेता है तो वे सामाजिक मान्यता समाज, मैत्री तथा प्रेम चाहते हैं। इस तरह भौतिक अनुराग बढ़ता जाता है। इन सब में पैसा खर्च होता है। जो व्यक्ति अतीव भौतिकतावादी होता है वह किसी को भी ठग सकता है, किसी का भी वध कर सकता है, रुपया माँग सकता है,उधार ले सकता है या चुरा सकता है, कोई भी बात जो धन ला सके कर सकता है। वह जानता है कि उसका घर, उसका परिवार, उसकी पत्नी और बच्चे सदा सदा विद्यमान नहीं रहेंगे । वे समुद्र के बुलबुले के समान हैं जो उत्पन्न होते हैं और थोड़ी देर में चले जाते हैं। किन्तु वह अत्यधिक अनुरक्त रहता है। धन की खोज के वास्ते वह अपने आध्यात्मिक विकास की बलि कर देता है। "मैं यह शरीर हूँ। मैं इस भौतिक जगत का हूँ। मैं इस देश का हैं. मैं इस जाति का हैं, मैं इस धर्म का हूँ और मैं इस परिवार से सम्बन्धित हूँ।” यह विकृत चेतना बढ़ती ही जाती है। उसका कृष्णभावनामृत कहाँ है? वह इस हद तक फँस जाता है कि उसके लिए धन अपने जीवन से भी अधिक मूल्यवान बन जाता है। चाहे कोई गृहस्थ हो, या श्रमिक, व्यापारी हो या चोर-डकैत, या धूर्त हर व्यक्ति धन के पीछे लगा हुआ हैं। यही मोह है। इस बन्धन में वह अपने को विनष्ट कर देता है।प्रह्लाद महाराज कहते हैं कि इस अवस्था में, जब आप भौतिकतावाद में अत्यधिक लीन हों तो आप कृष्णभावनामृत का अनुशीलन नहीं कर सकते । इसलिए बालपन से ही कृष्णभावनामृत का अभ्यास करना चाहिए । निस्सन्देह चैतन्य महाप्रभु इतने दयालु हैं कि वे कहते हैं, “कल करे सो आज कर" यद्यपि तुम अपने बालपन से ही कृष्णभावनामृत को शुरू करने से चूक गये हो, किन्तु तुम जैसी भी स्थिति में हो उसे अभी से शुरू कर दो। यही चैतन्य महाप्रभु की शिक्षा है। उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि चूंकि तुमने अपने बचपन से कृष्णभावनामृत नहीं शुरू किया इसलिए तुम उन्नति नहीं कर सकते। वे अत्यन्त कृपालु हैं। उन्होंने हमें यह उत्तम हरे कृष्ण कीर्तन प्रदान किया है, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । आप चाहे जवान हों या बूढ़े चाहे आप जो भी हों, बस इसे शुरू कर दें। आप यह नहीं जानते कि आपका जीवन कब समाप्त हो जायेगा। यदि आप निष्ठापूर्वक क्षणभर के लिए भी कीर्तन करते हैं तो इसका बहुत प्रभाव पड़ेगा। यह आपको महान से महान संकट से, अगले जीवन में पशु बनने से बचा लेगा।
(TO BE COUNTINUE)
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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