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वर्ल्ड ऑफ़ कृष्ण में आपकी आगन्तुक संख्या

मंगलवार, 31 मई 2016

तृणावर्त का उद्धार

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
तृणावर्त का उद्धार
     भगवान् श्रीकृष्ण ने एक वर्ष की आयु में ही तृणावर्त नामक दैत्य का उद्धार किया था| तृणावर्त दैत्य कंस का निजी सेवक था| कंस की प्रेरणा से ही बवंडर के रूप में वह गोकुल में आया और श्रीकृष्ण को उड़ाकर आकाश में ले गया| उसने ब्रज-रज से सारे गोकुल को ढक दिया और लोगों की देखने की शक्ति हर ली|

सोमवार, 30 मई 2016

भगवान् द्वारा शकट भन्जन

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
भगवान् द्वारा शकट भन्जन
     भगवान् जब तीन मास के हो गए तो उनका करवट बदलने का अभिषेक मनाया जा रहा था| उसी दिन जन्म नक्षत्र भी था| घर में बहुत सी स्त्रियों की भीड़ लगी हुई थी| गाना बजाना हो रहा था|

रविवार, 29 मई 2016

बाल्यावस्था में श्री कृष्ण द्वारा पूतना का उद्धार

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
बाल्यावस्था में श्री कृष्ण द्वारा पूतना का उद्धार
     नन्द बाबा जब मथुरा से चले, तब रास्ते में विचार करने लगे कि वसुदेव जी का वचन झूठा नहीं हो सकता|

शनिवार, 28 मई 2016

गोकुल में भगवान् का जन्म महोत्सव

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
गोकुल में भगवान् का जन्म महोत्सव
      पुत्र के जन्म होने पर नन्द बाबा का हृदय आनन्द से भर गया| उन्होंने वेदज्ञ ब्राह्मणों को बुलाकर अपने पुत्र का जातकर्म-संस्कार करवाया| साथ ही देवताओं और पित्तरों की पूजा भी करवाई|

शुक्रवार, 27 मई 2016

भगवान् का गोकुल में प्रवेश

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
भगवान् का गोकुल में प्रवेश
     भगवान् की आज्ञानुसार योगमाया ने द्वारपाल और पुरवासियों की की समस्त चेतना हर ली, वे सब के सब अचेत होकर सो गए| बंदीगृह की मोटी-मोटी जंजीरें और मोटे मोटे ताले अपने आप खुल गए|

गुरुवार, 26 मई 2016

भगवान् श्री कृष्ण का प्राकट्य

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
भगवान् श्री कृष्ण का प्राकट्य
     जब कंस ने देवकी के छः पुत्र एक-एक करके मार डाले, तब देवकी के सातवें गर्भ से भगवान् श्री शेष जी जिन्हें अनन्त भी कहते हैं- पधारे|

बुधवार, 25 मई 2016

कंस द्वारा बालकों की हत्या

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
कंस द्वारा बालकों की हत्या
प्राचीन काल में मथुरा के राजा शूरसेन थे| शूरसेन के पुत्र श्री वसुदेव जी का विवाह महाराजा उग्रसेन जी के भाई की पुत्री देवकी से हो गया|

मंगलवार, 24 मई 2016

पृथ्वी पर भगवान् श्री कृष्ण का उपकार

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
पृथ्वी पर भगवान् श्री कृष्ण का उपकार
     जब पृथ्वी पर लाखों दैत्यों के दल ने घमंडी राजाओं का रूप धारण कर अपने अत्याचारों से पृथ्वी को आक्रान्त कर रखा था, उससे छुटकारा पाने के लिए पृथ्वी जी ब्रह्मा की शरण में गई|

सोमवार, 23 मई 2016

श्री राम स्तुति

श्री हरि
श्री राम स्तुति कीजिए मन को शांति मिलती है !!!!
भये प्रगट कृपाला, दीन दयाला, कौसल्या हितकारी
हरषित महतारी, मुनि मनहारी, अद्भुत रूप विचारी
लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा, निज आयुध भुज चारी
भूषन वनमाला, नयन बिसाला, सोभासिंधु खरारी

नारायण का स्वरूप ब्रह्मा जी की दृष्टि से

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
‘नारायण’ का स्वरूप ब्रह्मा जी की दृष्टि से
वेद नारायण के परायण हैं, देवता भी नारायण के अंगों में कल्पित हैं, समस्त यज्ञ भी नारायण की प्रसन्नता के लिए हैं तथा उनसे जिन लोकों की प्राप्ति होती है, वे भी नारायण में ही कल्पित हैं|

रविवार, 22 मई 2016

नारायण शब्द की व्याख्या

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
‘नारायण’ शब्द की व्याख्या
योगीश्वर पिप्पलायन जी द्वारा ‘नारायण’ शब्द की व्याख्या-जो इस संसार कि उत्त्पत्ति, स्थिति और प्रलय का निमित्त कारण और उत्पादन-कारण दोनों ही है, बनने वाला भी है और बनाने वाला भी- परन्तु स्वयं कारण रहित है, जो स्वप्न जागृत और सुषुप्ति अवस्था में उनके साक्षी के रूप में विद्यमान रहता है और उनके अतिरिक्त समाधि में ज्यों-का-त्यों एक रस रहता है, जिसकी सत्ता से ही सत्तावान होकर, शरीर, इन्द्रिय, प्राण और अन्तःकरण अपना अपना काम करने में समर्थ होती हैं, उसी परम सत्य को ‘नारायण’ कहते हैं|

शनिवार, 21 मई 2016

माया से पार जाने का उपाय

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
माया से पार जाने का उपाय
योगीश्वर प्रबुद्ध जी द्वारा माया से पार जाने का उपाय बतलाया गया है- इसके लिए जिज्ञासु को गुरुदेव की शरण लेनी चाहिए| गुरुदेव ऐसे हों जो ब्रह्म-वेदों के पारदर्शी विद्वान हों, जिससे वे ठीक-ठीक समझा सकें| उनका चित शाँत हो|

शुक्रवार, 20 मई 2016

भगवान् की माया

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
भगवान् की माया
योगीश्वर अन्तरिक्ष जी द्वारा भगवान् की माया का वर्णन- आदि पुरुष परमात्मा जिस शक्ति से सम्पूर्ण भूतों के कारण बनते हैं और उनके विषय-मोक्ष मोक्ष कि सिद्धि के लिए अथवा अपने उपासकों की उत्कृष्ट सिद्धि के लिए स्वनिर्मित पञ्चभूतों के द्वारा नाना प्रकार के देव मनुष्य आदि शरीरों की सृष्टि करते हैं, उसी को भगवान् की माया कहते हैं|

गुरुवार, 19 मई 2016

भगवद भक्त के लक्ष्ण

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
भगवद भक्त के लक्ष्ण     
योगीश्वर हरि के अनुसार भगवद भक्त के लक्षण- आत्म स्वरूप भगवान् समस्त प्राणियों में आत्म रूप से नियता रूप से स्थित हैं|

बुधवार, 18 मई 2016

योगीश्वर के अनुसार भगवान का स्वरूप

॥ श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ॥
श्री हरि
योगीश्वर के अनुसार भगवान का स्वरूप
    यह आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, गृह-नक्षत्र, प्राणी, दिशाएँ, वृक्ष-वनस्पति, नदी, समुद्र-सब-के-सब भगवान के शरीर हैं।

मंगलवार, 17 मई 2016

मोहिनी एकादशी व्रत कथा

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे कृष्ण! वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी कथा क्या है? इस व्रत की क्या विधि है, यह सब विस्तारपूर्वक बताइए।

आत्मा भाग (3)

॥ श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ॥
श्री हरि


आत्मा भाग (3)
    ईश्वर द्वारा नियन्त्रित माया के गुणों ने ही सूक्ष्म और स्थूल शरीर का निर्माण किया है| जीव को शरीर और शरीर को जीव समझ लेने के कारण ही स्थूल शरीर के जन्म-मरण और सूक्ष्म शरीर के आवागमन का आत्मा पर आरोप किया जाता है|

सोमवार, 16 मई 2016

आत्मा भाग (2)

॥ श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ॥
श्री हरि
आत्मा भाग (2)
आत्मा सर्वगत, शुद्ध, अशरीरी, अक्षत, स्नायु, निर्मल, अपापहत, सर्वद्रष्टा, सर्वज्ञ, सर्वोत्कृष्ट और स्वयम्भू (स्वयं ही होने वाला) है|

रविवार, 15 मई 2016

आत्मा भाग (1)

॥ श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ॥
श्री हरि
आत्मा भाग (1)
समस्त प्राणियों में जितने भी शरीर हैं, उन समस्त शरीरों में एक ही आत्मा है| शरीर के भेद से अज्ञान के कारण आत्मा में भेद प्रतीत होता है, वास्तव में भेद नहीं है, वह आत्मा सदा ही अवध्य है, उसका किसी भी साधन से कोई भी नाश नहीं कर सकता|

शनिवार, 14 मई 2016

सत्संग की महिमा

॥ श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ॥
श्री हरि
सत्संग की महिमा
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि संसार की जितनी आसक्तियां हैं, उन्हें सत्संग नष्ट कर देता है|

शुक्रवार, 13 मई 2016

नारद ऋषि जी

॥ श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ॥
श्री हरि
नारद ऋषि जी 
    नारद जी अपने पूर्व जन्म में एक वेदचारी ब्राह्मणों की एक दासी का लड़का था। बचपन से ही उन्हें ब्राह्मणों की सेवा में नियुक्त कर दिया गया था। नारद जी के शैल स्वभाव को देखकर मुनियों ने उनपर बहुत अनुग्रह किया। उनकी अनुमति से बर्तनों पर लगा जूठन एक बार खा लिया करता था। इस क्रिया से उसके सारे पाप धुल्ल गये।

गुरुवार, 12 मई 2016

त्रिगुण परमेश्वर

॥ श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ॥
श्री हरि
  
त्रिगुण परमेश्वर
    सत्व गुण विष्णु हैं, रजोगुण प्रजापति ब्रह्म हैं और तमोगुण साक्षात रूद्र देव हैं। भगवान विष्णु तम के प्रकाशक हैं जो काल के रूप में व्यवस्थित हैं। जब सत्व के प्रकाशक विष्णु होते हैं तो स्थिति की दशा में व्यवस्थित होते हैं। ये ही तीन लोक हैं, ये ही तीन गुण हैं। ये ही तीन वेद हैं और ये तीन अग्नियाँ हैं। निश्चित रूप से आपस में अन्वय वाले हैं अर्थात एक-दूसरे के आश्रित हैं और परस्पर एक दूसरे के अनुव्रत रहा करते हैं।

बुधवार, 11 मई 2016

भक्त व वैष्णव रक्षक श्री हरि

॥ श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ॥
श्री हरि
 

आप सभी वैष्णवों के लिए श्री हरि चर्चा आज से रोज़ प्रस्तुत की जायेगी | आप सभी वैष्णवों से हाथ जोड़कर प्रार्थना हैं कि इस कार्य में हमारा सहयोग दें एवं किसी भी प्रकार कि त्रुटि के लिए हम सर्वप्रथम भगवान् श्री कृष्ण जी से तत्पश्चात आप सभी वैष्णवों से क्षमा याचना करते हैं |

मंगलवार, 10 मई 2016

शिखा का क्या महत्व है और क्योँ आवश्यक है?

श्री हरि:

हिन्दू धर्म का छोटे से छोटा सिध्दांत,छोटी-से-छोटी बात भी अपनी जगह पूर्ण और कल्याणकारी हैं। छोटी सी शिखा अर्थात् चोटी भी कल्याण,विकास का साधन बनकर अपनी पूर्णता व आवश्यकता को दर्शाती हैं। शिखा का त्याग करना मानो अपने कल्याणका त्याग करना हैं। जैसे घङी के छोटे पुर्जे की जगह बडा पुर्जा काम नहीं कर सकता क्योंकि भले वह छोटा हैं परन्तु उसकी अपनी महत्ता हैं, ऐसे ही शिखा की भी अपनी महत्ता हैं। शिखा न रखने से हम जिस लाभ से वंचित रह जाते हैं, उसकी पूर्ति अन्यकिसी साधन से नहीं हो सकती। 'हरिवंश पुराण' में एक कथा आती हैं। हैहय व तालजंघ वंश के राजाओं ने शक, यवन, काम्बोज पारद आदि राजाओं को साथ लेकर राजा बाहू का राज्य छीन लिया। राजा बाहु अपनी पत्नी के साथ वन में चला गया। वहाँ राजा की मृत्यु हो गयी। महर्षिऔर्व ने उसकी गर्भवती पत्नी की रक्षा की और उसे अपने आश्रम में ले आये। वहाँ उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर राजा सगर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। राजा सगर ने महर्षि और्व से शस्त्र और शास्त्र विद्या सीखीं। समय पाकर राजा सगरने हैहयों को मार डाला और फिर शक, यवन, काम्बोज, पारद, आदि राजाओं को भी मारने का निश्चय किया। ये शक, यवन आदि राजा महर्षि वसिष्ठ की शरण में चले गये। महर्षि वसिष्ठ ने उन्हें कुछ शर्तों पर उन्हें अभयदान दे दिया। और सगर कोआज्ञा दी कि वे उनको न मारे। राजा सगर अपनी प्रतिज्ञा भी नहीं छोङ सकते थे और महर्षि वसिष्ठ जी की आज्ञा भी नहीं टाल सकते थे। अत: उन्होंने उन राजाओं का सिर शिखासहित मुँडवाकर उनकों छोङ दिया। प्राचीन काल में किसीकी शिखा काट देना मृत्युदण्ड के समान माना जाता था। बङे दुख की बात हैं कि आज हिन्दु लोग अपने हाथों से अपनी शिखा काट रहे है। यह गुलामी की पहचान हैं। शिखा हिन्दुत्व की पहचान हैं। यह आपके धर्म और संस्कृतिकी रक्षक हैं। शिखा के विशेष महत्व के कारण ही हिन्दुओं ने यवन शासन के दौरान अपनी शिखा की रक्षा के लिए सिर कटवा दिये पर शिखा नहीं कटवायी। डा॰ हाय्वमन कहते है -''मैने कई वर्ष भारत मे रहकर भारतीय संस्कृति क अध्ययन किया हैं ,यहाँ के निवासी बहुत काल से चोटी रखते हैं , जिसका वर्णन वेदों में भी मिलता हैं। दक्षिण में तो आधे सिर पर 'गोखुर' के समान चोटी रखते हैं ।उनकी बुध्दि की विलक्षणता देखकर मैं अत्यंत प्रभावित हुआ हुँ। अवश्य ही बौध्दिक विकास में चोटी बङी सहायता देती हैं । सिर पर चोटी रखना बढा लाभदायक हैं । मेरा तो हिन्दु धर्म में अगाध विश्वास हैं और मैं चोटी रखने का कायल हो गया हूँ । " प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा॰ आई॰ ई क्लार्क एम॰ डी ने कहा हैं " मैंने जबसे इस विज्ञान की खोज की हैं तब से मुझे विश्वास हो गया हैं कि हिन्दुओं का हर एक नियम विज्ञान से परिपूर्ण हैं। चोटी रखना हिन्दू धर्म ही नहीं , सुषुम्ना के केद्रों की रक्षा केलिये ऋषि-मुनियों की खोज का विलक्षण चमत्कार हैं।" इसी प्रकार पाश्चात्य विद्वान मि॰ अर्ल थामस लिखते हैं की "सुषुम्ना की रक्षा हिन्दु लोग चोटी रखकर करते हैं जब्की अन्य देशों में लोग सिर पर लम्बे बाल रखकर या हैट पहनकर करते हैं। इन सब में चोटी रखना सबसे लाभकारी हैं। किसी भीप्रकार से सुषुम्ना की रक्षा करना जरुरी हैं।" वास्तव में मानव-शरीर को प्रकृति ने इतना सबल बनाया हैं की वह बङे से बङे आघात को भी सहन करके रह जाता हैं परन्तु शरीर में कुछ ऐसे भी स्थान हैं जिन पर आघात होने से मनुष्य की तत्काल मृत्यु हो सकती हैं। इन्हें मर्म-स्थान कहाजाता हैं। शिखा के अधोभाग में भी मर्म-स्थान होता हैं, जिसके लिये सुश्रुताचार्य ने लिखा हैं मस्तकाभ्यन्तरो परिष्टात् शिरा सन्धि सन्निपातों । रोमावर्तोऽधिपतिस्तत्रपि सधो मरण्म् । अर्थात् मस्तक के भीतर ऊपर जहाँ बालों का आवर्त(भँवर) होता हैं, वहाँ संपूर्ण नाङियों व संधियों का मेल हैं, उसे 'अधिपतिमर्म' कहा जाता हैं।यहाँ चोट लगने से तत्काल मृत्यु हो जाती हैं (सुश्रुत संहिता शारीरस्थानम् : ६.२८) सुषुम्ना के मूल स्थान को 'मस्तुलिंग' कहते हैं। मस्तिष्क के साथ ज्ञानेन्द्रियों- कान, नाक, जीभ, आँख आदि का संबंध हैं और कामेन्द्रियों - हाथ, पैर,गुदा,इन्द्रिय आदि का संबंध मस्तुलिंग से हैं मस्तिष्क व मस्तुलिंग जितने सामर्थ्यवान होते हैं उतनीही ज्ञानेन्द्रियोंऔर कामेन्द्रियों - की शक्ति बढती हैं। मस्तिष्क ठंडक चाहता हैं और मस्तुलिंग गर्मी मस्तिष्क को ठंडक पहुँचाने के लिये क्षौर कर्म करवाना और मस्तुलिंग को गर्मी पहुँचाने के लिये गोखुर के परिमाण के बाल रखना आवश्यक होता हैं ।बाल कुचालक हैं, अत: चोटी के लम्बे बाल बाहर की अनावश्यक गर्मी या ठंडक से मस्तुलिंग की रक्षा करते हैं शिखा रखने के अन्य निम्न लाभ बताये गये हैं - 

१ शिखा रखने तथा इसके नियमों का यथावत् पालन करने से सद्‌बुद्धि , सद्‌विचारादि की प्राप्ति होती हैं। 

२  आत्मशक्ति प्रबल बनती हैं। 

३ मनुष्य धार्मिक , सात्विक व संयमी बना रहता हैं। 

४ लौकिक - पारलौकिक कार्यों मे सफलता मिलती हैं। 

५ सभी देवी देवता मनुष्य की रक्षा करते हैं। 

६ सुषुम्ना रक्षा से मनुष्य स्वस्थ,बलिष्ठ ,तेजस्वी और दीर्घायु होता हैं। 

७ नेत्र्ज्योति सुरक्षित रहती हैं। इस प्रकार धार्मिक,सांस्कृतिक,वैज्ञानिक सभी द्रष्टियों से शिखा की महत्ता स्पष्ट होती हैं। परंतु आज हिन्दू लोग पाश्चात्यों के चक्कर में पङकर फैशनेबल दिखने की होङ में शिखा नहीं रखते व अपने ही हाथों अपनी संस्कृति का त्याग कर डालते हैं।लोग हँसी उङाये, पागल कहे तो सब सह लो पर धर्म का त्याग मत करो। मनुष्य मात्र का कल्याण चाहने वाली अपनी हिन्दू संस्कृति नष्ट हो रही हैं। हिन्दु स्वयं ही अपनी संस्कृति का नाश करेगा तो रक्षा कौन करेगा।

सोमवार, 9 मई 2016

भगवती तुलसी की कथा

भगवती तुलसी की कथा
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एक बार देवराज इंद्र देवगुरू बृहस्पति के साथ भगवान शिव का दर्शन करने कैलाश गए. महादेव ने दोनों की परीक्षा लेनी चाहिए इसलिए रूप बदलकर अवधूत बन गए. उनके शरीर पर कोई वस्त्र न था.

रविवार, 8 मई 2016

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 18


अर्जुन बोले :
संन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्।
त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन॥१८- १॥
हे महाबाहोहे हृषीकेशहे केशिनिषूदनमैं संन्यास और त्याग (कर्म योग) के सार को अलग अलग जानना चाहता हूँ।

शनिवार, 7 मई 2016

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 17

अर्जुन बोले :

ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विताः।
तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमः॥१७- १॥
हे कृष्ण। जो लोग शास्त्र में बताई विधि की चिंता न करअपनी श्रद्धा अनुसार यजन (यज्ञ) करते हैं,उन की निष्ठा कैसी ही - सातविकराजसिक अथवा तामसिक।

शुक्रवार, 6 मई 2016

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 16

दैवी और आसुरी सम्पद् (अध्याय 16 शलोक से 5) 
श्री भगवान बोले :
अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्॥१६- १॥
अभय,सत्त्व संशुद्धिज्ञान और कर्म योग में स्थिरतादान,इन्द्रियों का दमन,यज्ञ (जैसे प्राणायामजप यज्ञद्रव्य यज्ञ आदि)स्वध्यायतपस्यासरलता।

गुरुवार, 5 मई 2016

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 15

श्री भगवान बोले :
ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्॥१५- १॥
अश्वत्थ नाम वृक्ष जिसे अव्यय बताया जाता हैजिसकी जडें ऊपर हैं और शाखायें नीचे हैंवेद छन्द जिसके पत्ते हैंजो उसे जानता है वह वेदों का ज्ञाता है।

बुधवार, 4 मई 2016

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 14

संसार की उत्पत्ति (अध्याय 14 शलोक से 4) श्री भगवान बोले :

परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम्।
यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः॥१४- १॥
हे अर्जुनमैं फिर से तुम्हें वह बताता हूँ जो सभी ज्ञानों में सेउत्तम ज्ञान है। इसे जान कर सभी मुनी परम सिद्धि को प्राप्त हुये हैं।

मंगलवार, 3 मई 2016

वरूथिनी एकादशी व्रत कथा

धर्मरा‍ज युधिष्ठिर बोले कि हे भगवन्! वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है, उसकी विधि क्या है तथा उसके करने से क्या फल प्राप्त होता है? आप विस्तारपूर्वक मुझसे कहिए, मैं आपको नमस्कार करता हूँ।

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 13

ज्ञान सहित क्षेत्र (अध्याय 13 शलोक से 18) 
श्रीभगवानुवाच :
इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते।
एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः॥१३- १॥
इस शरीर कोहे कौन्तेयक्षेत्र कहा जाता है। और ज्ञानी लोग जो इस क्षेत्र को जानता है उसे क्षेत्रज्ञ कहते हैं।

सोमवार, 2 मई 2016

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 12

भक्ति की श्रेष्ठता (अध्याय 12 शलोक से 12) 
अर्जुन उवाच :
एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते।
ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः॥१२- १॥
दोनों में से कौन उत्तम हैं - जो भक्त सदा आपकी भक्ति युक्त रह कर आप की उपासना करते हैंऔर जो अक्षर और अव्यक्त की उपासना करते हैं।

रविवार, 1 मई 2016

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11. विश्वरूपदर्शनयोग
अर्जुन की प्रार्थना (अध्याय 11 शलोक से 4) 
अर्जुन उवाच :
मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसंज्ञितम्।
यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम॥११- १॥
मुझ पर अनुग्रह कर आपने यह परम गुह्य अध्यात्म ज्ञान जो मुझे बतायाआपके इन वचनों से मेरा मोह (अन्धकार) चला गया है।