|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
पृथ्वी पर भगवान् श्री कृष्ण का उपकार
जब पृथ्वी पर लाखों दैत्यों के दल ने घमंडी राजाओं का रूप धारण कर अपने अत्याचारों से पृथ्वी को आक्रान्त कर रखा था, उससे छुटकारा पाने के लिए पृथ्वी जी ब्रह्मा की शरण में गई| पृथ्वी ने उस समय गाय का रूप धारण कर रखा था| उसके नेत्रों से आंसू बह-बह कर उसके मुँह पर आ रहे थे| उसका मन तो खिन्न था ही, शरीर भी बहुत जर्जर हो गया था| वह बड़े करुण स्वर से रम्भा रही थी| ब्रह्मा जी को उसने अपनी पूरी कष्ट-कहानी सुनाई| उसकी कथा सुनने के उपरान्त ब्रह्मा जी उस गाय (पृथ्वी) को लेकर क्षीर सागर के तट पर गए| क्षीर सागर पहुँच कर ब्रह्मा जी ने भगवान् की स्तुति गाई| स्तुति गाते-गाते वे समाधि में लीन हो गए| उन्होंने समाधि अवस्था में आकाशवाणी सुनी| फिर ब्रह्मा जी ने देवताओं से कहा- हे समस्त देवताओं| मैंने भगवान् की वाणी सुनी है| तुम लोग भी उसे मेरे द्वारा सुन लो और वैसा ही करो | उसके पालन में विलम्भ नहीं होना चाहिए| भगवान् शीघ्र ही पृथ्वी का भार नष्ट करने के लिए पृथ्वी पर श्री कृष्ण के रूप में अवतार लेंगे, और जब तक वह पृथ्वी पर लीला करें तब तक आप सब भी अपने अपने अंशों द्वारा यादव कुल में जन्म लेकर उनको सहयोग दो| वसुदेव जी के घर स्वयं पुरुषोतम भगवान् प्रकट होंगे| उनकी और उनकी प्रियतमा (श्री राधा) की सेवा के लिए देवांगनाएँ जन्म लें| स्वयं भगवान् शेषनाग भी भगवान् श्री कृष्ण के बड़े भाई के रूप में अवतार लेंगे| भगवान् की योगमाया भी, जिसने सारे संसार को मोहित कर रखा है उनकी आज्ञा उनकी लीला को संपन्न करने के लिए वो भी अवतार लेंगी|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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