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मंगलवार, 31 मई 2016

तृणावर्त का उद्धार

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
तृणावर्त का उद्धार
     भगवान् श्रीकृष्ण ने एक वर्ष की आयु में ही तृणावर्त नामक दैत्य का उद्धार किया था| तृणावर्त दैत्य कंस का निजी सेवक था| कंस की प्रेरणा से ही बवंडर के रूप में वह गोकुल में आया और श्रीकृष्ण को उड़ाकर आकाश में ले गया| उसने ब्रज-रज से सारे गोकुल को ढक दिया और लोगों की देखने की शक्ति हर ली|
यशोदा जी ने अपने बालक को जहाँ बिठाया था, वहाँ जाकर देखा तो कृष्ण वहां नहीं थे| उस जोर की आंधी में अपने पुत्र का पता ना पाकर यशोदा को बड़ा दुःख हुआ| वह अपने पुत्र को याद करते करते दीन हो गईं और बछड़ा मर जाने पर जो एक गाय की दशा हो जाती है, वही दशा उनकी हो गई| बवंडर शाँत होने पर जब धुल का वेग कम हो गया, तब यशोदा जी के रोने का स्वर सुनकर दूसरी गोपियाँ भी रोती हुईं वहाँ दौड़ी आईं|
      इधर तृणावर्त बवंडर रूप में जब भगवान् को आकाश में उड़ाकर ले जा रहा था तब श्रीकृष्ण ने अपना भार बढ़ा दिया| उनके भार को न संभाल पाने के कारण उसका वेग शाँत हो गया| वह अधिक चल ही नहीं सका| तब श्रीकृष्ण ने उस दैत्य का गला दबाया| तृणावर्त की आँखें बाहर आ गईं, बोलती बंद हो गई, तृणावर्त के प्राण निकल गए| और बालक श्रीकृष्ण के साथ तृणावर्त ब्रज में गिर पड़ा| वहाँ बैठी स्त्रियों ने देखा की एक विशालकाय दैत्य एक चटान पर गिरा पड़ा है और उसका अंग-अंग चकनाचूर हो गया है और भगवान् श्रीकृष्ण उसके वक्ष:स्थल पर लटक रहे हैं| यह देखकर गोपियाँ विस्मित हो गईं| उन्होंने झटपट वहां जाकर श्रीकृष्ण को गोद में लिया और लाकर यशोदा माता को दे दिया| सभी ने एक ही स्वर में कहा कि कितनी अद्भुत घटना घट गई| बालक राक्षस द्वारा मृत्यु के मुख में डाल दिया गया था, फिर भी बालक जीवित है| इस राक्षस के पाप ही इसे खा गए| इस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण ने तृणावर्त का उद्धार किया|
     वास्तव में तृणावर्त कौन था?
     तृणावर्त वास्तव में एक राजा था| वह नर्मदा नदी में अपनी रानियों के साथ विहार कर रहा था| उसी समय नारद जी वहां से जा रहे थे| नारद जी को देखकर उसकी रानियाँ लज्जा गईं, और उन्होंने अपने अपने वस्त्र पहन लिए परन्तु वह राजा उसी नग्न अवस्था में ही रहा और नारद जी को प्रणाम भी नहीं किया| नारद जी ने तब उसे श्राप दिया कि तू राक्षस हो जा| 
     तब उसने अपने इस कृत्य पर नारद जी से क्षमा मांगी| उसने कहा कामवश मैं इतना अन्धा हो गया था कि यह दुष्कर्म कर बैठा| मुझे क्षमा करें और इस श्राप से मुक्ति का उपाय बताएं| तब श्री नारद जी द्रवित होकर बोले कि हे राजन! आपने अपनी भूल मानकर अपनी भूल का पश्चाताप किया है, इसलिए मैं आपको इस श्राप से मुक्ति का उपाय बताता हूँ|
    द्वापर युग में जब श्री नारायण श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लेंगे, तब उनके स्पर्श मात्र से आपको इस श्राप से मुक्ति मिल जायेगी और वही आपका उद्धार करेंगे | वह राजा यही तृणावर्त राक्षस ही था, जिसका स्वयं भगवान् ने उद्धार किया|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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