|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
भगवान् का गोकुल में प्रवेश
भगवान् की आज्ञानुसार योगमाया ने द्वारपाल और पुरवासियों की की समस्त चेतना हर ली, वे सब के सब अचेत होकर सो गए| बंदीगृह की मोटी-मोटी जंजीरें और मोटे मोटे ताले अपने आप खुल गए|वसुदेव जी की चेतना भी योगमाया ने हर ली और उनकी बेड़ियाँ भी काट दीं| वसुदेव जी माया के वशीभूत होकर श्री कृष्ण के बालरूप को लेकर गोकुल की ओर चल पड़े| उस समय बादल धीरे धीरे गरज कर जल की फुहारें छोड़ रहे थे इसलिए शेष जी ने अपने फनों से भगवान् को छाया करके उनके पीछे-पीछे चलने लगे| उन दिनों बार-बार वर्षा होती रहती थी, इस कारण यमुना जी का जल बहुत बढ़ गया था| उनका प्रभाव गहरा और तेज़ हो गया था|
जब वसुदेव जी भगवान् श्री कृष्ण को लेकर यमुना जी को पार करने लगे तो यमुना जी ने विचार किया- आज प्रभु मेरे तट पर आ रहे हैं... ये सोच कर ही यमुना जी आनन्द और प्रेम से भर गईं| आँखों से इतने आँसू निकले कि बाढ़ आ गई| जब भगवान् यमुना जी में आये तो यमुना जी ने अपने जल से उनके चरण पखारे और उनकी स्तुति की| फिर यमुना जी ने अपना वेग और जल का प्रभाव कम कर के उनको गोकुल जाने के लिए मार्ग दे दिया| वसुदेव जी ने गोकुल में जाकर देखा कि सबके सब नींद में अचेत पडे हैं| यशोदा जी ने उसी क्षण एक कन्या को जन्म दिया परन्तु योगमाया के प्रभाव से यशोदा को यह तो आभास हुआ की उन्होंने संतान को जन्म दिया है परन्तु यह न देख सकी कि वह संतान पुत्र है या पुत्री| वसुदेव जी ने भगवान् को यशोदा जी के पास लिटा दिया और उनकी कन्या को लेकर बंदीगृह में पहुँचे तो पुनः बंदीगृह के ताले लग गए, वसुदेव जी पहले की भान्ति बेड़ियों में जकड़े गए| सब कुछ पहले जैसा हो गया| तब कराकर में कन्या (योगमाया) रोने लगी| उसकी आवाज सुनकर सभी पहरेदार जाग गए और कंस को शिशु के पैदा होने का समाचार मिला|
कंस तुरंत कारागार में पहुंचा और बालक के स्थान पर कन्या को देखा| कंस ने उस कन्या को मारने के लिए देवकी के हाथों से छीन लिया तो वसुदेव बोले कि हे कंस! यह तो एक कन्या है, ये आपका क्या बिगाड़ सकती है? कंस बोला विष्णु बड़ा ही मायावी है उसके जानबूझ कर कन्या का रूप ले लिया है ताकि कंस धोखा खा जाए और इसे कन्या समझ कर इसकी हत्या न करे| उस विष्णु को यह नहीं पता की कंस को मूर्ख बनाना सरल नहीं है| इतना कह कर वह कन्या को लेकर कारागार के बाहर एक पत्थर पर जैसे ही मारने लगा, वह कन्या कंस के हाथों से लुप्त होकर आकाश में अष्टभुजी देवी के रूप में प्रकट हुई|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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