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बुधवार, 1 जून 2016

भगवान् का ओखल से बाँधा जाना

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
भगवान् का ओखल से बाँधा जाना
     कार्तिक मास की बात है, नन्दरानी यशोदा ने घर की दासियों को दूसरे कामों में लगा दिया और स्वयं अपने लल्ला को माखन खिलाने के लिए दही मथने लगीं|
तभी श्रीकृष्ण स्तनपान के लिए माता के पास आये, और माता उन्हें स्तनपान करवाने लगी| थोड़ी देर में अंगीठी पर रखे दूध में उबाल भी आ गया| माता श्रीकृष्ण को अतृप्त ही छोड़कर दूध उतारने चली गई|  इस पर लल्ला को क्रोध आ गया और उन्होंने नकली आंसू आखों में भर लिए और अपना मुख क्रोध वाला करके माखन की मटकी लाठी मारकर तोड़ डाली और किसी दूसरे के घर माखन खाने चले गए|
     यशोदा जी दूध को उतार कर फिर मथने के लिए चली आईं| वहां आकर क्या देखती हैं कि मटका टुकड़े-टुकड़े हो गया है| वह समझ गई कि यह सब लल्ला की करतूत है| इधर उधर ढूँढने पर पता चला कि श्रीकृष्ण एक उलटे हुए ओखल पर पड़े हैं| उन्हें यह भी डर था कि कहीं उनकी चोरी पकड़ी ना जाए, इसलिए चौकन्ने होकर चारों और ताकते जाते हैं| माँ के हाथ में छड़ी देख कर कृष्ण दौड़े| यशोदा जी भी उनके पीछे-पीछे काफी दौड़ीं| आखिर उन्होंने श्रीकृष्ण को पकड़ ही लिया और उन्हें डराने धमकाने लगीं| जब उनको लगा की लल्ला काफी डर चुका है तो माता का दिल पिघल गया और माता ने छड़ी दूर फैंक दी| परन्तु फिर सोचने लगी कि इसको सजा तो मिलनी ही चाहिए| इसलिए माता ने उसको उसी ओखल के पास ला कर रस्सी से बाँधने लगी| जैसे ही माता उन्हें बाँधने लगती हैं तब रस्सी दो अंगुल छोटी रह गई| तब यशोदा जी ने एक दूसरी रस्सी लाकर उसमें जोड़ी| लेकिन वो फिर भी रस्सी दो अंगुल छोटी रह गई| इस प्रकार करते करते उन्होंने बहुत सी रस्सियाँ लाकर जोड़ीं, परन्तु हर बार रस्सी छोटी पड़ जाती| माता श्रीकृष्ण को बाँध न सकीं| वह काफी थक गई| 
     जब कृष्ण ने देखा कि उनकी माता बहुत थक गई है और पसीने से लथपथ हो गई हैं, तब श्रीकृष्ण माता की रस्सी से अपने आप ही बंध गए| यशोदा जी बोली कि लल्ला अब तू यहीं बंधा रहेगा | ये कहकर माता अपने काम में व्यस्त होने चली गईं|
     उस ओखल के सामने दो पेड़ थे|  जड़-योनी में आने से पूर्व वह दोनों कुबेर के पुत्र थे| नारद जी के श्राप से वे दोनों जड़-योनी को प्राप्त हुए थे| और उनकी मुक्ति का उपाय भी श्रीकृष्ण द्वारा ही होना नियत हुआ था| भगवान् से सोचा कि अब इनकी भी मुक्ति का समय आ गया है| भगवान् उन दोनों पेड़ों के बीच में ओखल फसा कर जोर से खींचने लगे| खींचते-खींचते दोनों वृक्ष गिर गए और उन दोनों का उद्धार हो गया और वे दोनों अपने धाम को चले गए|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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