|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
रास लीला (भाग 1)
भगवान् ने चीर हरण के समय गोपीयों को जिन रात्रियों को संकेत किया था, वे सब-के-सब पुंजीभूत होकर एक ही रात्रि के रूप में उल्लासित हो रही थी|भगवान् ने उन्हें देखा और देखकर दिव्य बनाया| अब भगवान् ने भी अपनी अचिन्त्य महाशक्ति योगमाया के सहारे उन्हें निमित्त बनाकर रसमयी रास क्रीडा करने का संकल्प किया| भगवान् के संकल्प करते ही इन्द्रदेव ने प्राचीन दिशा के मुखमण्डल पर अपने शीतल किरणमयी करकमलों से लालिमा की रोली केसर मल दी| फिर भगवान् श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी की मधुर तान छेड़ दी| भगवान् की बांसुरी की तान सुनकर गोपीयों में विचित्र गति हो गई| श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए जिन्होंने एक साथ साधना की थी, वे गोपियाँ भी एक दुसरे को सूचना न देकर, यहाँ तक कि एक-दूसरे से अपनी चेष्टा को छुपाकर जहां भगवान् श्रीकृष्ण थे वहाँ चल पड़ीं|
बांसुरी की दवानी सुनकर जो-जो गोपियाँ काम कर रही थीं, सब अपना अपना काम छोड़कर श्रीकृष्ण के पास चल पड़ीं| पिता और पतियों ने उन्हें रोका, परन्तु वे सब बांसुरी की मधुर तान से इतनी मोहित हो चुकी थीं कि रोकने पर भी नहीं रुकीं| रूकती कैसे? विश्वमोहन श्रीकृष्ण ने उनके प्राण, मन और आत्मा सब कुछ का अपहरण कर लिया था|
गोपियां जो भगवान् श्रीकृष्ण को केवल अपना परम प्रियतम ही मानती थीं, उनमें उनका ब्रह्मभाव नहीं था| इस प्रकार उनकी दृष्टि प्राकृति गुणों में ही आसक्त दिखती हैं| ऐसी स्थिति में उनके लिए गुणों के प्रवाहरूप इस संसार की निवृति कैसे सम्भव हुई? ऐसा प्रश्न रजा परीक्षित ने शुकदेव जी से पूछा था|
वास्तव में भगवान् प्रकृति सम्बन्धी बुद्धि-विनाश, प्रमाण-प्रमेय और गुण-गुनी भाव से रहित हैं| वह अचिन्त्य अनन्त अप्राकृत परम कल्याणस्वरूप गुणों के एकमात्र आश्रय हैं| उन्होंने अपनी लीला को जो प्रकट किया है| उसका प्रयोजन केवल इतना ही है कि जीव उसके सहारे अपना परम कल्याण सम्पादन करे| इसलिए भगवान् से केवल सम्बन्ध हो जाना चाहिए| वह सम्बन्ध चाहे जैसा भी हो| फिर जीव को भगवान् की ही प्राप्ति होती है| तुम्हारे जैसे परम भगवद भगवान् का रहस्य जानने वाले भक्त को श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में ऐसा सन्देह नहीं करना चाहिए| योगेश्वरों के भी ईश्वर अजन्मा भगवान् के लिए भी यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है| उनके संकल्प मात्र से भौहों के इशारे से सारे जगत का परम कल्याण हो सकता है|
जब गोपियाँ भगवान् श्रीकृष्ण के पास आईं, तब उन्होंने उनसे उनके पास आने का कारण पूछा| भगवान् ने कहा रात का समय है, आप अपने परिवार को छोड़कर इस जंगल में आईं हैं| कृपया वापिस घर लौट जाओ| अपने घर वालों को भय में न डालो| गोपीयों स्त्रियों का परम धर्म यही है कि वे पति और उनके भाई-बंधुओं की निष्कपट भाव से सेवा करें और संतान का पालन-पोषण करें| जिन स्त्रियों को उत्तम लोक प्राप्त करने की इच्छा हो वे पति को न छोड़े| भले ही वह बुरे स्वभाव वाला, भाग्यहीन, वृद्ध, मूर्ख, रोगी या निर्धन ही क्यों ना हो| मेरी लीला और गुणों के श्रवण से, दर्शन से, कीर्तन से अनन्य प्रेम की प्राप्ति होती है, वैसे प्रेम की प्राप्ति पास रहने से नहीं होती, इसलिए तुम लोग अभी अपने-अपने घर लौट जाओ|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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