|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
यज्ञपत्नियों पर कृपा
एक बार भगवान् कृष्ण बलराम सहित ग्वालबालों के संग गौएँ चराते-चराते वन में बहुत दूर निकल गए| ग्वालबालों को भूख सताने लगी| उन्होंने भगवान् श्रीकृष्ण से भूख मिटाने का उपाय करने को कहा| जब ग्वालबालों ने भगवान् से इस प्रकार प्रार्थना की तब उन्होंने मथुरा की अपनी भक्त ब्राह्मण पत्नियों पर अनुग्रह करने के लिए यह बात कही-मेरे प्यारे मित्रो! यहाँ से थोड़ी दूर वेदवादी ब्राह्मण स्वर्ग की कामना से अग्निरस नामक यज्ञ कर रहे हैं| वहां आप जाओ और मेरा और मेरे बड़े भाई बलराम का नाम लेकर थोडा सा भात-भोजन की सामग्री मांग लाओ| ब्राह्मणों को दण्डवत प्रणाम करने के उपरान्त उन्होंने उनसे भगवान् श्रीकृष्ण और बलराम जी का नाम लेकर भोजन सामग्री मांगी, प्रान्ती ब्राह्मणों ने उनकी मांग पर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया| वे अपना काम करते गए और ग्वालबाल भोजन के लिए प्रार्थना करते रहे| थक कर ग्वालबाल वापिस लौट आये और भगवान् श्रीकृष्ण को साड़ी बात बताई| उनकी बात सुनकर श्रीकृष्ण हंसने लगे| उन्होंने ग्वालबालों को समझाया कि संसार में असफलता तो बार-बार होती है, उससे निराश नहीं होना चाहिए| बार बार प्रयत्न करने पर सफलता मिल ही जाती है| अबकी बार आप ब्राह्मणों की पत्नियों के पास जाओ और मेरा नाम लेकर उनसे भात मांग लाओ, वे इनकार नहीं करेंगी|
अबकी बार ग्वालबाल पत्नी शाला में गए| उन्होंने ब्राह्मणियों को भगवान् श्रीकृष्ण की साड़ी बात सुना दि और कहा कि वह स्वयं भी निकट ही ठहरे हुए हैं| वे ब्राह्मण पत्नियाँ बहुत दिनों से भगवान् श्रीकृष्ण की लीलाएं सुन रही थीं| उनका मन उनमें लग चुका था| वे सदा इसी बहाने में लगी रहती थीं कि किसी प्रकार श्रीकृष्ण का दर्शन हो जाए| उन्होंने बर्तनों में बहुत ही स्वादिष्ट भोजन सामग्री ली और अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के पास जाने के लिए घर से निकल पड़ीं-ठीक वैसे ही जैसे नदियाँ समुद्र से मिलने के लिए| आज तक ब्राह्मण पत्नियों ने श्रीकृष्ण की लीलाएं अपने कानों से सुनी थीं, आज भगवान् को वनमाला पहने, मस्तक पर मोर-मुकुट धारण किये हुए, और शरीर पर पीताम्बर धारण किये हुए ग्वालबालों से घिरे प्रियतम के दर्शन कर मन-ही-मन उनका आलिंगन करती रहीं| भगवान् सबकी बुद्धियों के साक्षी हैं, सबके ह्रदय की बात जानते हैं| उन्होंने ब्राह्मण पत्नियों का स्वागत करते हुए कहा संसार में सच्ची भलाई को समझने वाले जितने भी जितने भी बुद्धिमान पुरुष हैं, वे अपने प्रियतम के समान ही मुझसे प्रेम करते हैं और ऐसा प्रेम करते हैं जिसमें किसी प्रकार की कामना नहीं होती|तुम्हारा यहाँ आना उचित है| मैं तुम्हारे प्रेम का अभिनन्दन करता हूँ| अब तुम मेरा दर्शन कर चुकीं| अब अपनी यज्ञशाला में लौट जाओ| तुम्हारे पति ब्राह्मण गृहस्थ हैं| वे तुम्हारे साथ मिलकर ही अपना यज्ञ पूरा कर सकेंगे|
ब्राह्मण पत्नियों ने कहा- श्रुतियाँ कहती हैं कि जो एक बार भगवान् को प्राप्त हो जाता है, उसे फिर संसार में नहीं लौटना पड़ता| आप अपनी यह वेदवाणी सत्य कीजिये| अब हमारे पति-पुत्र, माता-पिता, भाई-बन्धु हमें स्वीकार नहीं करेंगे| क्योंकि हम उनकी आगया का उल्लंघन करके आई हैं| भगवान् ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे आपका तिरस्कार नहीं करेंगे| देवियों आप जाओ, अपना मन मुझ में लगा दो| तुम्हें बहुत शीघ्र मेरी प्राप्ति होगी| इस तरह ब्राह्मण पत्नियाँ वापिस लौट गईं और उन्होंने अपने पतियों के संग वह यज्ञ पूर्ण किया| उनके पतियों ने उनमें कोई भी दोष नहीं पाया|
जब ब्राह्मणों को पता चला कि स्वयं श्रीकृष्ण ने भोजन मंगवाया था तो उन्हें अपनी करनी पर बहुत पश्चाताप हुआ| तब वे पछता-पछता कर अपनी निन्दा करने लगे| उन्होंने भगवान् से अपने कृत्य की क्षमा मांगी| इस तरह भगवान् ने यज्ञपत्नियों पर अपनी कृपा की|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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