|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
सुदर्शन का उद्धार
एक बार नन्द बाबा आदि गोपों ने शिवरात्रि के अवसर पर बैल गाड़ियों में सवार होकर अम्बिकावन की यात्रा की| वहां उन लोगों ने सरस्वती नदी में स्नान किया और पशुपति भगवान् शंकर जी तथा भगवती अम्बिका जी का बड़ी भक्ति के साथ पूजन किया| वहां उन्होंने गौएँ, सोना, वस्त्र, मधु और अन्न ब्राह्मणों को दिए|उस दिन परम भाग्यवान नन्द-सुनन्द आदि गोपों ने उपवास रखा था, इसलिए लोग केवल जल पीकर रात के समय सरस्वती नदी के तट पर ही सो गए|
उस अम्बिकावन में बड़ा भारी अजगर रहता था| उस दिन वह भूखा भी बहुत था| दैव-वश वह उधर ही आ निकला और उसने सोये हुए नन्द जी को पकड़ लिया| अजगर के पकड़ लेने पर नन्दराय जी चिल्लाने लगे-‘पुत्र कृष्ण! कृष्ण! दौड़ो, दौड़ो पुत्र! यह अजगर मुझे निगल रहा है| मैं तुम्हारी शरण में हूँ| जल्दी मुझे इस संकट से बचाओ| नन्द जी का स्वर सुनकर सभी जाग गए और उन्हें अजगर के मुँह में देखर सभी घबरा गए| अब वे लुकाठियों (अध जली लकडियाँ) से उस अजगर को मारने लगे| परन्तु अजगर ने नन्द बाबा को नहीं छोड़ा| इतने में भगवान् श्रीकृष्ण ने वहां पहुंचकर अपने चरणों से उस अजगर का स्पर्श किया, स्पर्श करते ही अजगर के सभी अशुभ भस्म हो गए और वह उसी क्षण अजगर का रूप छोड़कर बहुत ही सुन्दर रूपवान पुरुष बन गया| उस पुरुष के शरीर से दिव्य ज्योति निकल रही थी| वह सोने के हार पहने हुआ था| वह प्रणाम करके भगवान् के सामने खड़ा हो गया, तब उन्होंने उससे पूछा- तुम कौन हो? तुम्हें यह अजगर योनि क्यों प्राप्त हुई थी? अवश्य ही तुम्हें विवश होकर इस योनि में आना पड़ा होगा|
अजगर योनि से मुक्त हुआ पुरुष बोला- पहले मैं एक विद्याधर था| मेरा नाम सुदर्शन था| मेरे पास सौन्दर्य तो था ही, लक्ष्मी भी बहुत थी| इससे मैं विमान में इधर-उधर घूमता रहता था| एक दिन मैंने कुछ कुरूप ऋषियों को देखा| अपने सौन्दर्य के घमण्ड में मैंने उनकी हंसी उड़ाई| मेरे उसी अपराध के कारण उन्होंने मुझे अजगर योनि में जाने का श्राप दे दिया| भगवन! आज आपके चरण कमलों के स्पर्श से मेरे सब अशुभ नष्ट हो गए हैं| सब पापों का नाश करने वाले प्रभो! जो लोग आपके चरणों की शरण ग्रहण करते हैं, उन्हें आप समस्त पापों से मुक्त कर देते हैं| अब मैं आपके चरणकमलों क स्पर्श से उस श्राप से मुक्त हो गया हूँ और अपने लोक में जाने की अनुमति चाहता हूँ| सुदर्शन ने भगवान् श्रीकृष्ण की स्तुति की और भगवान् की परिक्रमा करके भगवान् से आज्ञा लेकर अपने लोक में चला गया|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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