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शनिवार, 4 जून 2016

अघासुर का उद्धार

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
अघासुर का उद्धार
     एक दिन सुबह-सुबह श्याम सुन्दर अपने साथी ग्वालबालों के साथ गाय चराने के लिए वन को निकले| उसी समय एक अघासुर नामक दैत्य आ गया| वह इतना भयंकर था कि अमृतपान करके अमर हुए देवता भी उस से चिंतित रहा करते थे और इस बात कि बाट देखते थे कि किसी प्रकार इसकी मृत्यु हो जाए|
अघासुर पूतना और बकासुर का छोटा भाई और कंस का भेजा हुआ था| वह श्रीकृष्ण को देखकर सोचने लगा कि यह बालक मेरे भाई और बहन का मारने वाला है| इसलिए मैं  आज इसे मार डालूँगा| ऐसा निश्चय कर के वह दैत्य अजगर का रूप धारण करके मार्ग में लोटने लगा उसका यह अजगर शरीर एक योजन लम्बे बड़े पर्वत के समान विशाल और मोटा था| उसकी नीयत श्रीकृष्ण के साथ ग्वालबालों को भी खाने की थी| इसलिए उसने एक बड़ी सी गुफा के सामान अपना मुँह खोल लिया| उसके जबड़े कंदराओं के समान थे, और उसकी जीभ एक चौड़ी लाल सड़क दिखती थी|
     
     असुर का ऐसा रूप देख कर ग्वालबालों ने समझा कि यह भी वृन्दावन की कोई शोभा है| ग्वालबाल उस गुफा को देखने के उद्देश्य से उस अजगर के मुँह में घुस गए| श्रीकृष्ण उसको देखते ही समझ गए कि यह एक राक्षस है| भला उनसे क्या छिपा रहता? वह तो समस्त प्राणियों के हृदय में ही निवास करते हैं| अब उन्होंने यह निश्चय किया कि अपने सखाओं को उस दैत्य के मुँह में जाने से बचा लें| भगवान् यह सोच ही रहे थे कि सभी ग्वालबाल उस असुर के मुँह में चले गए| परन्तु अघासुर से अभी उन्हें निगला नहीं था| वह अपने भाई बहन को मारने वाले श्रीकृष्ण की प्रतीक्षा कर रहा था| भगवान् सोच रहे थे कि ऐसा कौन सा उपाय है, जिस से ग्वालबाल भी बच जाएँ और इस दैत्य की जीवन लीला भी समाप्त हो जाए| ऐसा सोचते सोचते श्रीकृष्ण भी उसके मुँह में चले गए|
     
     श्रीकृष्ण के अंदर जाते ही अघासुर ने अपना मुँह बंद कर लिया | मुँह बन्द होने के कुछ ही देर बाद सभी ग्वालबाल मूर्छित हो गए|
 वह ग्वालबालों के साथ भगवान् को चबाकर चूर-चूर कर डालना चाहता था| 
परन्तु उसी समय अविनाशी श्रीकृष्ण ने बड़ी फुर्ती से अपना शरीर बढ़ा लिया| जिस से अजगर का मुँह खुल गया| उसकी आँखें पलट गईं| भगवान् ने उसका मुँह फाड़ डाला जिस से उसकी मृत्यु हो गई| फिर भगवान् ने सभी ग्वालबालों को उसके मुख से बाहर निकाल कर उनके चेतना प्रदान की| इस प्रकार अघासुर का उद्धार हुआ |
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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