|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
गोपियों की विरह
गोपियाँ विरह वेश में गाने लगीं| प्यारे! तुम्हारे जन्म के कारण वैकुण्ठ आदि लोकों से भी ब्रज की महिमा बढ़ गई है| तभी तो सौंदर्य और मृदुलता की देवी लक्ष्मी जी आपका स्थान वैकुण्ठ छोड़कर यहाँ नित्य-निरंतर निवास करने लगी हैं, चरणों की सेवा करने लगी हैं| परन्तु प्रियतम! देखो तुम्हारी गोपियाँ जिन्होंने तुम्हारे चरणों में ही अपने प्राण समर्पित कर रखे हैं, वन-वन में भटक कर तुम्हें ढूंढ रही हैं| तुम केवल यशोदा नन्दन ही नहीं हो, समस्त शरीरधारियों के हृदय में रहने वाले उनके साक्षी हो, अन्तर्यामी हो| ब्रह्मा जी की प्रार्थना से विश्व की रक्षा के लिए तुम यदुवंश में अवतीर्ण हुए हो| ब्रजवासियों के दुःख दूर करने वाले वीर शिरोमणि श्यामसुन्दर ! तुम्हारी मन्द-मन्द मुस्कान ही तुम्हारे प्रेमी जनों के सारे मान-मद को चूर-चूर कर देने के लिए पर्याप्त है| प्यारे सखा! हमसे रूठो न प्रेम करो| हम तो तुम्हारी दासी हैं| तुम्हारे चरणों पर निछावर हैं| हम अबलाओं को अपना वह परम सुन्दर सांवला-सांवला मुख-कमल दिखलाओ|
तुम्हारे चरणकमल शरणागत प्राणियों के सारे पापों को नष्ट कर देते हैं| वे समस्त सौन्दर्य, माधुर्य की खान हैं, फिर स्वयं लक्ष्मी जी उनकी सेवा करती रहती हैं| तुम उन्हीं चरणों से हमारे बछड़ों के पीछे-पीछे चलते हो और हमारे लिए उन्हें सांप के फणों पर रखने में भी तुमने संकोच नहीं किया| हमारा हृदय तुम्हारी विरह में जल रहा है, तुम अपने वे चरण हमारे वक्षःस्थल पर रखकर हमारे हृदय की ज्वाला को शान्त करो| हमारे प्रिय स्वामी ! जब तुम गौओं को चराने के लिए ब्रज से निकलते हो तब यह सोचकर कि तुम्हारे युगल चरण कंकड़, तिनके और काँटे चुभ जाने से कष्ट पाते होंगे, तब हमारा मन बेचैन हो जाता है| हमें बड़ा दुःख होता है| दिन ढलने पर जब आप वन से घर लौटते हो तो हम देखती हैं कि तुम्हारे मुख-मण्डल पर नीली-नीली अलकें लटक रही हैं और गौओं के खुर से उड़-उड़कर धूल पड़ी हुई है| प्यारे! तुम हमें अपना वह सौंदर्य दिखा-दिखाकर हमारे हृदय में मिलन की आकांक्षा उत्पन्न करते हो| तुम्हारे चरण-कमल शरणागत भक्तों की समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाले हैं| पृथ्वी के तो वह भूषण ही हैं| आपत्ति के समय एकमात्र उन्हीं का चितन करना उचित है, जिनसे सारी आपत्तियों का नाश हो जाता है|
प्यारे! दिन के समय जब तुम वन-विहार करने चले जाते हो, तब तुम्हें देखे बिना हमारे लिए एक-एक क्षण युग के समान हो जाता है, और जब तुम सन्ध्या के समय लौटते हो तब तुम्हारा परम सुन्दर मुखारविन्द हम देखती हैं, उस समय पलकों का गिरना हमारे लिए भार हो जाता है, और ऐसा जान पड़ता है कि इन नेत्रों की पलकें बनाने वाला विधाता मूर्ख है| प्यारे श्यामसुन्दर ! हम अपने पति-पुत्र, भाई-बन्धु और कुल-परिवार त्यागकर, उनकी इच्छा और आज्ञाओं का उल्लंघन करके तुम्हारे पास आई हैं| तुम प्रेम भरी चितवन से हमारी ओर देखकर मुस्कुरा देते थे और हम देखती थीं तुम्हारा वह विशाल वक्षःस्थल, जिसमें लक्ष्मी जी नित्य-निरन्तर निवास करती हैं| तब से अब तक निरन्तर हमारी लालसा बढती जा रही है और हमारा मन अधिकादिक मुग्ध होता जा रहा है| उन्हीं चरणों से तुम रात्रि के समय घोर जंगल में छिपे-छिपे भटक रहे हो| क्या कंकड़, पत्थर आदि की चोट से उनमें पीड़ा नहीं होती? हमें तो इसकी संभावना मात्र से ही चक्कर आ रहा है| हे कृष्ण! श्यामसुन्दर! प्राणनाथ! हमारा जीवन तुम्हारे लिए है,हम तुम्हारे लिए जी रही हैं, हम तुम्हारी हैं|
*****************************************************
भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
*****************************************************
Please Visit:
***************
Our Blog: Click Here
Our Facebook Timeline: Click Here
Our Facebook Group: Click Here
Our Facebook Page: Click Here
Our Youtube Channel: Click Here
Our Blog: Click Here
Our Facebook Timeline: Click Here
Our Facebook Group: Click Here
Our Facebook Page: Click Here
Our Youtube Channel: Click Here