|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
कामधेनु द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण का अभिषेक
जब भगवान् श्रीकृष्ण ने गिरिराज गोवर्धन को धारण करके मूसलाधार वर्षा से ब्रजवासियों कि रक्षा की, तब उनके पास गोलोक से माता कामधेनु (गाय) उनको बधाई देने के लिए और स्वर्ग से देवराज इन्द्र अपने अपराध को क्षमा करवाने के लिए आये|अपने इस अपराध के कारण इन्द्र बहुत लज्जित हुआ| इसलिए उन्होंने भगवान् श्रीकृष्ण के एकान्त स्थान पर जाकर अपना सूर्य के समान तेजस्वी मुकुट उनके चरणों में रखकर भगवान् का चरण स्पर्श किया| फिर उसके हाथ जोड़ कर भगवान् श्रीकृष्ण की स्तुति की|
जब देवराज ने भगवान् श्रीकृष्ण की स्तुति की, तब भगवान् हँसते हुए मेघ के समान गंभीर वाणी में इन्द्र को संबोधित कर के बोले- हे इन्द्र! तुम ऐश्वर्य और धन-सम्पति के मद में पूरे मतवाले हो रहे थे| इसलिए मैंने ही तुम्हारा यज्ञ भंग किया| यह मैंने इसलिए किया कि अब तुम नित्य-निरंतर केवल मुझे ही स्मरण कर सको| जो ऐश्वर्य और धन के मद में अँधा हो जाता है, वह यह नहीं देख पाता कि मैं काल रूप परमेश्वर हाथ में दण्ड लेकर उसके सिर पर सवार हूँ| जिस पर अनुग्रह करता हूँ उसको ऐश्वर्य भ्रष्ट कर देता हूँ| इन्द्र! तुम्हारा मंगल हो| अब तुम अपनी राजधानी अमरावती जाओ और मेरी आज्ञा का पालन करो| अब कभी घमण्ड मत करना| नित्य मेरा ही स्मरण और अनुभव करना| और अपने अधिकार के अनुसार उचित रीति से मर्यादा का पालन करना|
भगवान् इस प्रकार आज्ञा दे रहे थे कि मनस्विनी कामधेनु ने अपनी सन्तानों के साथ गोप वेशधारी परमेश्वर की वन्दना की और उनको संबोधित कर के कहा- हे सचिदानन्द श्रीकृष्ण! आप महायोगी योगेश्वर हैं| आप स्वयं ही विश्व है, विश्व के परम कारण हैं, अच्युत हैं| हे सम्पूर्ण विश्व के स्वामी! आपको अपने रक्षक के रूप में पाकर हम सनाथ हो गईं हैं| आप जगत के स्वामी हैं, परन्तु हमारे तो आप परम पूजनीय देव हैं प्रभो! इन्द्र त्रिलोकी के इन्द्र हुआ करें, परन्तु हमारे इन्द्र तो आप ही हैं| अतः आप ही गौ, ब्राह्मण देवता और साधू-जनों की रक्षा के लिए हमारे इन्द्र बन जाइए| हम गोयें ब्रह्मा जी की प्रेरणा से आपको अपना इन्द्र मानकर आपका अभिषेक करेंगी| विश्वात्मन! आपने पृथ्वी का भार उतारने के लिए ही अवतार लिया है|
भगवान् श्रीकृष्ण से ऐसा कहकर माता कामधेनु ने अपने दूध से और देवताओं की प्रेरणा से देवराज इन्द्र ने ऐरावत की सूंढ़ के द्वारा लाये हुए आकाश गंगा के जल से श्रीकृष्ण का अभिषेक किया और उन्हें ‘गोविन्द’ नाम से संबोधित किया| उस समय वहां नारद तुम्बुरु आदि गन्धर्व, विद्याधर, सिद्ध और चारण पहले से आ गए थे| वे सब भगवान् के यश का गान करने लगे और अप्सराएं आनन्द से भरकर नृत्य करेने लगीं| देवता भगवान् श्रीकृष्ण पर फूलों की वर्षा करने लगे| तीनो लोकों में परमानन्द की बाढ़ आ गयी| भगवान् श्रीकृष्ण का अभिषेक होने पर जो जीव स्वाभाव से ही क्रूर हैं, वे भी वैरहीन हो गए , उनमें भी परस्पर मित्रता हो गयी| इन्द्र ने इस प्रकार गौ और गोकुल के स्वामी श्रीगोविन्द का अभिषेक किया|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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