|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
धेनुकासुर का उद्धार
अब बलराम और श्रीकृष्ण ने प्रौगंड-अवस्था में अर्थात् छठे वर्ष में प्रवेश किया था| अब उन्हें गौएँ चराने की स्वीकृति मिल गई| वे अपने सखा ग्वालबालों के साथ गौएँ चराते हुए वृन्दावन में जाते| जब बलराम जी खेलते-खेलते किसी ग्वालबाल की गोद के तकिये पर सिर रखकर लेट जाते, तब श्रीकृष्ण उनके चरण दबाने लगते, पंखा झलने लगते| इस प्रकार अपने बड़े भाई की थकावट दूर करते| भगवान् ने अपनी योगमाया से अपने ऐश्वर्य के स्वरूप को छिपा रखा था| वह गोपबालकों जैसी ही लीलाएं करते थे| एक दिन श्री दामा जी और सुबल आदि गोपों ने बलराम और कृष्ण से कहा कि यहाँ से थोड़ो दूरी पर बड़ा भारी वन है| उसमें पाँत-के-पाँत ताड़ के वृक्ष भरे पड़े हैं| वहां बहुत से ताड़ के फल पक-पक कर गिरते रहते हैं| परन्तु वहाँ धेनुक नामक दुष्ट दैत्य रहता है| उसने उन फलों पर रोक लगा रखी है| वह दैत्य गधे के रूप में रहता है| उस दैत्य ने अभी तक अनेकों मनुष्य खा डाले हैं| यही कारण है कि उसके डर से मनुष्य और पशु पक्षी उस वन में नहीं जाते| कृष्ण तुम वे फल हमें खिलाओ|अपने सखा कि बात सुनकर श्रीकृष्ण और बलराम हंस पड़े और फिर ग्वालबालों को प्रसन्न करने के लिए उस वन कि ओर चल पड़े| उस वन में पहुँचकर बलराम जी ने अपनी बाहों से उन ताड़ के पेधों को पकड़ लिया और मतवाले हाथी के बच्चे के समान उन्हें जोर जोर से हिलाकर बहुत से फल नीचे गिरा दिए| जब धेनुक ने फलों के गिरने का स्वर सुना, तब वह पर्वतों के साथ पृथ्वी को कम्पाता हुआ उनकी ओर दौड़ा| अपने बड़े वेग से बलराम जी के सामने आकर पिछले पैरों से उनकी छाती में दुलत्ती मारी और इसके बाद वह दुष्ट बड़े जोर से रेंगता हुआ वहाँ से हट गया| दूसरी बार वह गधा बलराम जी की ओर दौड़ा तो बलराम जी ने उसकी पिछली दोनों टांगें पकड़कर आकाश में घुमाते हुए जोर से ताड़ के वृक्ष पर दे मारा| घुमाते समय ही उस गधे के प्राण पखेरू उड़ गए|
उसके गिरने की चोट से महान ताड़ का वृक्ष जिसका ऊपरी भाग बहुत विशाल था- स्वयं तो गिर ही पड़ा, सटे हुए दूसरे वृक्ष को भी उसने तोड़ डाला| उस समय धेनुकासुर के भाई-बन्धु अपने भाई के मारे जाने से आग बबूला हो गए| सब के सब गधे श्रीकृष्ण और बलराम जी पर टूट पड़े| उनमें से जो-जो सामने आया, उसी-उसी को श्रीकृष्ण और बलराम जी ने खेल-खेल में ही पिछले पैर पकड़कर ताड़ के वृक्षों पर दे मारा और उन सब की तत्क्षण ही मृत्यु हो गई| इस तरह भगवान् श्रीकृष्ण ने धेनुकासुर का उद्धार किया|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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