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बुधवार, 29 जून 2016

नारद जी का भगवान् के पास आना और स्तुति करना

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
नारद जी का भगवान् के पास आना और स्तुति करना    
     देवर्षि नारद जी भगवान् के परम प्रेमी और समस्त जीवों के हितैषी हैं| कंस के यहाँ से लौटकर वह भगवान् श्रीकृष्ण के पास आयें और एकान्त में उनसे कहने लगे- हे  सच्चिदानन्दस्वरूप श्रीकृष्ण! आपका स्वरूप मन और वाणी का विषय नहीं है| आप योगेश्वर हैं|
सारे जगत का नियंत्रण आप ही करते हैं| आप सबके हृदय में निवास करते हैं और सब-के-सब आपके हृदय में निवास करते हैं| जैसे एक ही आग सभी लकड़ियों में व्याप्त रहती है, वैसे ही आप सभी प्राणियों की आत्मा हैं| आत्मा के रूप में होने पर भी आप अपने आप को छिपाये रखते हैं| आप सब के अधिष्ठान और स्वयं अधिष्ठान रहित हैं| आप ही अपनी माया से सृष्टि की उत्पत्ति और उसका प्रलय करते हैं| यह सब करने के लिए आपको आपके अतिरिक्त किसी और की आवश्यकता नहीं है| आप दैत्य और राक्षसों का विनाश करने के लिए ही यदुवंशी के रूप में अवतीर्ण हुए हैं|
     प्रभो! अब मैं आपके हाथों चाणूर, मुष्टिक और दूसरे पहलवान, कुवाल्यापीड हाथी और स्वयं कंस को भी मरते देखूँगा| उसके बाद शंकासुर, कालयवन, मुर और नरकासुर का वध देखूँगा| प्रभो! आप विशुद्ध विज्ञानधन हैं|  मैं आपकी शरण ग्रहण करता हूँ| इस समय आपने अपनी लीला प्रकट करने के लिए मनुष्य का श्री-विग्रह प्रकट किया है और आप यदुवंश के शिरोमणि बने हुए हैं| प्रभो! मैं आपको नमस्कार करता हूँ| 
     नारद जी ने इस प्रकार भगवान् की स्तुति की और प्रणाम किया| भगवान् के दर्शनों से नारद जी का रोम-रोम खिल गया|
व्योमासुर का उद्धार
     एक दिन ग्वालबाल पर्वत की चोटियों पर गौएँ चरा रहे थे| वहाँ ही कुछ ग्वालबाल चोर, कुछ ग्वालबाल रक्षक और कुछ भेड़ बनकर लुक्का-छुप्पी का खेल खेल रहे थे| उसी समय ग्वाल का रूप धारण करके व्योमासुर वहां आया| वह मायावियों के आचार्य मायासुर का पुत्र था और स्वयं भी बड़ा मायावी था| वह खेल में चोर बना और भेड़ बने ग्वालों को चुराकर छुपा आता| वह असुर बार-बार ग्वालबालों को चुराकर पहाड़ की गुफा में डाल देता और गुफा का मुँह एक बड़ी चट्टान से बन्द कर देता| भक्तवत्सल भगवान् सब कुछ समझ गए और अबकी बार जब वह ग्वालबालों के लेकर जा रहा था तब भगवान् ने उसे रास्ते में ही दबोच लिया| उसने अपना असली रूप धारण कर लिया और अपने आप को छुडाना चाहा| परन्तु भगवान् ने उसे इस प्रकार अपने शिकंजे में फांस लिया था कि वह अपने आप को छुड़ा ही नहीं सका| तब भगवान् ने उसे धरती पर गिरा दिया और उसका गला घोंट कर मार डाला| उन्होंने गुफा के मुँह पर लगी चट्टान तोड़ डाली और ग्वालबालों को बाहर निकाल लिया|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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