|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
कालिया नाग पर कृपा
भगवान् श्रीकृष्ण इस प्रकार वृन्दावन में अनेक लीलाएं करते| एक दिन अपने सखा ग्वालबालों के साथ यमुना तट पर गए|उस दिन बलराम जी उनके साथ नहीं थे| भगवान् श्रीकृष्ण सभी ग्वालबालों के साथ यमुना किनारे गेंद खेल रहे थे|तभी उनकी गेंद यमुना जी में गिर गई| भगवान् श्रीकृष्ण ने यमुना जी से गेंद निकाल लाने के किये कदम्ब के वृक्ष पर चढ़ गए| तभी एक ग्वालबाल ने कहा कि नहीं-नहीं- कान्हा हमें गेंद नही चाहिए| तुम इस वृक्ष से नीचे आ जाओ| इस यमुना में बहुत ही भयंकर सर्पों का राजा कालिया नाग रहता है| इस यमुना में कालिया नाग का कुण्ड है| इस यमुना में हाथी भी गिर जाए तो भी वापिस नही आता| कालिया नाग के भयंकर विष से मृत्यु को प्राप्त हो जाता है| तुम मत जाओ|
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा कि हे सखा! गेंद मेरे कारण यमुना जी में गई है, और एक नाग के भय से डरकर मैं चुप-चाप भी नहीं बैठ सकता| मित्र तुम चिन्ता न करो मुझे कुछ नहीं होगा| ऐसा कह कर श्रीकृष्ण यमुना जी में कूद गए| यमुना जी का जल नाग के विष के कारण पहले से ही खौल रहा था, श्रीकृष्ण के कूदने पर और उछलने लगा| भगवान् श्रीकृष्ण कालिया नाग के कुण्ड में कूदकर अतुल बलशाली मतवाले गजराज के समान जल उछलने लगे| कालिया नाग ने जब पानी के उछलने की आवाज़ सुनी तो देखा की कोई मेरे निवास स्थान का तिरस्कार कर रहा है| उसने देखा कि एक बालक उस के सामने खड़ा है| कालिया नाग आश्चर्य-चकित रह गया कि एक छोटा सा बालक विष वाले पानी में भी मौज से खेल रहा है, तब उसका क्रोध और बढ़ गया और उसने श्रीकृष्ण को ओने शरीर के बंधन में जकड लिया| किसी ग्वालबाल ने नन्द-बाबा को बताया कि हम सब यमुना किनारे गेंद खेल रहे थे तब कृष्ण के द्वारा गेंद यमुना जी में गिर गई| कान्हा उस गेंद को लेने ले लिए यमुना जी में अपनी इच्छानुसार कूद गया है| बलराम जी श्रीकृष्ण के प्रभाव को बहुत अच्छी तरह जानते थे, वह हस पड़े, परन्तु बोले कुछ नही| सभी लोग तुरन्त यमुना जी के तट पर पहुँचे और जल में भगवान् को कालिया नाग के पाश में बंधे देखा|
माता यशोदा तो अपने लाल के पीछे कालिया के कुण्ड में कूदने ही जा रही थी, परन्तु गोपीयों ने रोक लिया| सबकी आँखें भगवान् के कमल-मुख पर लगी थी| नन्द-बाबा आदि के जीवन प्राण तो श्रीकृष्ण ही थे|
सांप के शरीर से बन्ध जाना तो श्रीकृष्ण की लीला थी| जब उन्होंने देखा कि ब्रज के सभी लोग मेरे लिए चिंतित हैं और मेरे सिवा इनका कोई सहारा ही नहीं है, तब वे एक मुहूर्त तक सर्प के बंधन में बंध कर बाहर निकल आये| भगवान् श्रीकृष्ण ने उस समय अपना शरीर फुलाकर खूब मोटा कर लिया| इससे सांप का शरीर टूटने लगा, तब वह अपना नागपाश छोड़कर अलग खड़ा हो गया और क्रोध में आग-बबूला होकर फुन्कारें मारने लगा| उसके नथुनों से विष की फुहारें निकल रही थी| भगवान् श्रीकृष्ण ने फिर उस सर्प को पकड़ कर जोर-जोर से मुष्टिका प्रहार किया जिस से सर्प का बल क्षीण हो गया, और वह भगवान् की मुष्टिका प्रहार से वह अधमरा हो गया और क्षमा माँगने लगा| भगवान् श्रीकृष्ण ने उसे क्षमा करते हुए कहा हे नागराज! तुम हमारी यमुना जी को छोड़कर यमुना जी के ही रास्ते से रमणक द्वीप पर चले जाओ| कालिया नाग ने कहा- परन्तु प्रभु रमणक द्वीप पर आपके वाहन गरुड़ जी मुझे जीता नहीं छोड़ेंगे, उन्ही के डर से भागकर मैं यहाँ आकर रहने लगा था| भगवान् ने कहा- हे कालिया अब तुम्हे गरुड कुछ नहीं कहेंगे| तुम्हारे शीश पर हमारी चरण-धुली देखकर तुम्हे नमस्कार करेंगे, खायेंगे नहीं| चलो अब हमें ऊपर छोड़कर आओ|
फिर कालिया नाग भगवान् को अपने शीश पर उठाकर यमुना जी के ऊपर ले आया| तब श्रीकृष्ण कालिया के फनों पर नृत्य करने लगे| नृत्य के उपरान्त भगवान् श्रीकृष्ण की आज्ञा से कालिया नाग यमुना जी को छोड़कर रमणक द्वीप पर सदा के लिए चला गया|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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