|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
ब्रजवासियों का श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम
शुकदेव जी बोले संसार के सभी प्राणी अपनी आत्मा से ही सबसे अधिक प्रेम करते हैं| पुत्र से, धन से या और किसी से जो प्रेम होता है-वह तो इसलिए कि वस्तुएं अपनी आत्मा को प्रिय लगती हैं| यही कारण है कि सभी प्राणियों का अपनी आत्मा के प्रति जैसा प्रेम होता है, वैसा अपने कहलाने वाले पुत्र, धन और गृह आदि में होता है| जो लोग देह को ही आत्मा मानते हैं, वे भी अपने शरीर से जितना प्रेम करते हैं- उतना प्रेम शरीर के सम्बन्धी पुत्र, मित्र से नहीं करते| जब विचार के द्वारा यह ज्ञात हो जाता है कि शरीर मैं नहीं हूँ, यह शरीर मेरा है ही नहीं तब वह शरीर से भी आत्मा जितना प्रेम नहीं करता| यही कारण है कि इस देह के जीर्ण-शीर्ण हो जाने पर भी जीने की आशा प्रबल रूप से बनी रहती है| इस से यही सिद्ध होता है कि सभी प्राणी अपनी आत्मा से ही सबसे अधिक प्रेम करते हैं| इन श्रीकृष्ण को ही तुम आत्माओं का आत्मा समझो| संसार के कल्याण के लिए ही योगमाया का आश्रय लेकर ये यहाँ देहधारी के समान जान पड़ते है| जो लोग भगवान् श्रीकृष्ण के वास्तविक रूप को जानते हैं, उनके लिए इस जगत में जो कुछ भी चराचर पदार्थ हैं, अथवा इससे परे परमात्मा, ब्रह्म नारायण आदि जी भगवदस्वरूप हैं, सभी श्रीकृष्ण स्वरूप ही हैं| श्रीकृष्ण के अतिरिक्त और कोई प्राकृत-अप्राकृत है ही नहीं| सभी वस्तुओं का अंतिम रूप अपने कारण में स्थित होता है| उस कारण के भी परम कारण हैं श्रीकृष्ण! तब भला बताओ, किस वस्तु को श्रीकृष्ण से भिन्न बतलाएं? जिन्होंने पुण्य कीर्ति मुकुंद मुरारी के पदपल्लव की नौका का आश्रय लिया है, जो की सद्पुरुषों का सर्वस्व हैं, उनके लिए यह भवसागर बछड़े के खुर के गढ़े के समान है| उन्हें परमपद की प्राप्ति हो जाती है और उनके लिए विपत्तियों का निवास स्थान- यह संसार नहीं रहता|
भगवान् श्रीकृष्ण की ग्वालबालों के साथ वन क्रीडा, अघासुर को मारने, हरी-हरी घास से युक्त भूमि पर बैठकर भोजन करना, अप्राकृत रूपधारी बछड़ों और ग्वालबालों का प्रकट होना और ब्रह्मा जी द्वारा की गई स्तुति को जो मनुष्य सुनता और कहता है- उनको धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है| इस प्रकार श्रीकृष्ण और बलराम ने कुमार-अवस्था के अनुरूप आँख-मिचौनी, सेतुबंध, बंदरों की भान्ति उछलना-कूदना आदि अनेक लीलाएं करके अपनी कुमार-अवस्था ब्रज में ही त्याग दीं|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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