|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
शन्खचूड का उद्धार
एक दिन की बात है कि श्रीकृष्ण और बलराम जी वन में गोपियों के साथ विहार कर रहे थे| भगवान् श्रीकृष्ण निर्मल पीताम्बर और बलराम जी नीलाम्बर धारण किये हुए थे| भगवान् श्रीकृष्ण और बलराम जी मिलकर राग अलाप रहे थे| उनका गान सुनकर गोपियाँ मोहित हो गईं|जिस समय दोनों भाई इस तरह स्वछन्द विहार कर रहे थे और उन्मत की भान्ति गा रहे थे, उस समय वहाँ शन्खचूड नामक एक यक्ष आया| वह कुबेर का अनुचर था| दोनों के देखते-देखते वह गोपियों को लेकर उत्तर दिशा की ओर भाग चला| गोपियाँ रो-रोकर चिल्लाने लगीं| वे हा कृष्ण! हा राम! पुकार कर रो-पीट रही थीं| दोनों भाई उनकी और दौड़ पड़े| डरो मत! डरो मत! कहते हुए शाल का वृक्ष हाथ में लेकर बड़े वेग से क्षण भर में ही उस नीच यक्ष के पास पहुँच गए| यक्ष ने देखा की काल और मृत्यु के रूप में दोनों उसके पास आ गए हैं, शन्खचूड घबरा गया| उसने गोपियों को वहीं छोड़ दिया और अपने प्राण बचाने के लिए भागा| बलराम जी गोपियों की रक्षा के लिए वहीं खड़े रहे परन्तु श्रीकृष्ण शन्खचूड के पीछे भागे| भगवान् श्रीकृष्ण चाहते थे कि शन्खचूड के सिर की चूड़ामणि निकाल लें| कुछ दूर जाने पर भगवान् ने उसे पकड़ लिया और उस दुष्ट के सिर पर ज़ोर से घूँसा जमाया| और चूड़ामणि के साथ उसका सिर भी धड़ से अलग हो गया| इस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण शन्खचूड को मारकर और चूड़ामणि लेकर गोपियों के पास आये और बड़े प्रेम स वह चूड़ामणि अपने बड़े भाई बलराम जी को दे दी|
गोपियों द्वारा भगवान् के रूप का वर्णन
गोपियाँ आपस में कहतीं- श्यामसुन्दर कितने सुन्दर हैं| जब वह हँसते हैं तब हास्यरेखाएं हार का रूप धारण कर लेती हैं, शुभ मोती सी चमकने लगती हैं| उनके वक्षःस्थल पर जो श्री वत्स की सुनहरी रेखा है, वह तो ऐसी जान पड़ती है, मानो श्याम मेघ पर बिजली ही स्थिर रूप से बैठ गई है| जब वह बांसुरी बजाते हैं तब ब्रज के झुण्ड-के-झुण्ड बैल, गौएँ और हिरण उनके पास दौड़ आते हैं| जब अपनी बांसुरी में गौओं का नाम लेकर पुकारते हैं, तो नदियों की गति ही रुक जाती है| भगवान ने बांसुरी बजानी किसी से सीखी नहीं, अपने आप ही अनेकों प्रकार की राग-रागिनियाँ उन्होंने निकाल लीं| जब वह अपने अधरों पर बांसुरी रखकर बजाने लगते हैं, उस समय बांसुरी की तान सुनकर ब्रह्मा, शंकर इन्द्रादि बड़े-बड़े देवता भी-जो सर्वज्ञ हैं-उसे नहीं पहचान पाते| नन्दरानी यशोदा जी वास्तव में बड़ी ही पुण्यवती हैं| तभी तो उन्हें ऐसे पुत्र मिले हैं|बडभागिनी गोपियों का मन श्रीकृष्ण में ही लगा रहता था| वे श्रीकृष्णमयी हो गई थीं| जब भगवान् दिन में गौएँ चराने चले जाते, तब वे उन्हीं का चिन्तन करती रहतीं और आपस में उनकी लीलाओं का गान करती रहतीं| इस प्रकार उनके दिन बीत जाते|
*****************************************************
भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
*****************************************************
Please Visit:
***************
Our Blog: Click Here
Our Facebook Timeline: Click Here
Our Facebook Group: Click Here
Our Facebook Page: Click Here
Our Youtube Channel: Click Here
Our Blog: Click Here
Our Facebook Timeline: Click Here
Our Facebook Group: Click Here
Our Facebook Page: Click Here
Our Youtube Channel: Click Here