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सोमवार, 13 जून 2016

गोवर्धन धारण

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
गोवर्धन धारण 
     जब इन्द्र को पता लगा की उनकी पूजा बन्द कर दी गई है, तब वे नन्द बाबा और गोपों पर बहुत क्रोधित हुए| इन्द्र अपने आपको त्रिलोकी का ईश्वर मानता था, उसने क्रोध से तिलमिलाकर प्रलय करने वाल्व मेघों को ब्रज पर चढ़ाई करने की आज्ञा दी और कहा- इन जंगली ग्वालों को इतना घमण्ड! सचमुच यह धन का नशा है|
एक साधारण मनुष्य कृष्ण के बल पर उन्होंने मेरा अपमान कर डाला| इस कृष्ण का सहारा लेकर इन्होने मेरी अवहेलना की है| मेघराज आप जाकर इनकी हेकड़ी को धुल में मिला दो, तथा इनके पशुओं का संहार कर डालो| मैं भी तुम्हारे पीछे-पीछे अपने ऐरावत हाथी पर चढ़कर उस नन्द के पुत्र कृष्ण का नाश करने के लिए आता हूँ|
     इन्द्र के प्रलय मेघ मूसलाधार वर्षा करके ब्रजवासियों को पीड़ित करने लगे| ब्रज का कोना-कोना पानी से भर गया| कहाँ ऊँचा है, कहाँ नीचा, इसका पता लगना मुश्किल हो गया था| जब पशु, बच्चे और ग्वाले ग्वालिने ठण्ड के कारण व्याकुल होने लगे, तब वे सभी भगवान् श्रीकृष्ण की शरण में गए| वे बोले प्रिय कृष्ण हमारी रक्षा करो| हमारे रक्षक तुम ही हो प्रभो! तुम ही इन्द्र के क्रोध से हमारी रक्षा कर सकते हो| भगवान् ने देखा कि ओलों और वर्षा की मार के कारण सब बेहोश हो रहे हैं| वे समझ गए कि सब इन्द्र का किया-धरा है| हमने इन्द्र का यज्ञ भंग कर दिया है, इसी कारण वह ब्रज का नाश करना चाहता है| यह अपने आपको तीनों लोकों का स्वामी मानता है, मैं इसका यह घमण्ड चूर-चूर कर दूंगा| यह ब्रज मेरे आश्रित है| इसकी रक्षा करना मेरा कर्तव्य है| अब कर्तव्य पालन का समय आ गया है|
     भगवान् श्रीकृष्ण ने खेल हे खेल में एक ही हाथ से गोवर्धन पर्वत उखाड़ लिया और उस विशाल पर्वत को अपने हाथ की तर्जनी ऊँगली पर धारण कर लिया| उसके बाद भगवान् ने ब्रजवासियों से कहा कि तुम सब लोग यह शंका मत करना कि मेरे हाथ से पर्वत गिर पड़ेगा| आप लोग तनिक भी मत डरो| इस आँधी और पानी से बचने के लिए मैंने यहीं युक्ति रची है| तुम सभी अपने गोधन, छकड़ों और बच्चों आदि को अपने-अपने साथ लेकर गोवर्धन के नीचे आ जाओ| सभी ने ऐसा ही किया| भगवान् श्रीकृष्ण ने अपनी योगमाया से सभी के भूख-प्यास, विश्राम आदि की चेतना हर ली और सात दिन पर्वत को उठाये रखा| वे एक भी पग इधर-उधर नहीं हुए| श्रीकृष्ण की योगमाया का प्रभाव देखकर इन्द्र के आश्चर्य का ठिकाना न रहा| उसकी साड़ी हेकड़ी निकल गई| इसके बाद उसने मेघों को वर्षा करने से रोक दिया| आकाश से बादल छंट गए और सूर्य दिखने लगे| तब भगवान् ने कहा- प्यारे गोपो! अब आप निडर हो जाओ और सभी पर्वत के नीचे से निकल जाओ| अब सब कुछ ठीक हो गया है| सभी पर्वत के नीचे से निकल गए| फिर भगवान् श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को पूर्ववत उसके स्थान पर रख दिया| नन्द बाबा, यशोदाजी और व्रजवासियों ने श्रीकृष्ण को गले से गला लिया और आशीर्वाद दिए| उस समय आकाश में स्थित देवता, गंधर्वादी भगवान् श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे, उन पर फूलों की वर्षा करने लगे| यह कार्य भगवान् श्रीकृष्ण ने सात वर्ष की आयु में किया था|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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