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शुक्रवार, 10 जून 2016

प्रलम्भासुर उद्धार

|| श्री राधा कृष्णाभ्यां नमः ||
श्री हरि
प्रलम्भासुर उद्धार
     अब आनंदित स्वजन सम्बन्धियों से घिरे हुए एवं उनके मुख से अपनी कीर्ति का गुणगान सुनते हुए श्रीकृष्ण ने गोकुल मंडित गोष्ट में प्रवेश किया| इस प्रकार अपनी योगमाया से ग्वाल का वेष बनाकर राम और श्याम ब्रज में क्रीडा कर रहे थे|
उन दिनों ग्रीष्म ऋतु थी, लेकिन बलराम और श्रीकृष्ण के प्रभाव के कारण वृन्दावन में वसन्त ऋतु की छटा छिटक रही थी| वहां ना दावाग्नि का ताप लगता था और ना सूर्य का ताप ही| नदियों में अगाध जल भरा हुआ था|यह सब वहां पर श्रीकृष्ण और बलराम जी के निवास करने के कारण था|ऐसा सुन्दर वन देखकर श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण और गौरसुन्दर श्रीबलराम जी ने उसमें विहार करने की इच्छा की| आगे-आगे गौएँ चलीं, पीछे-पीछे ग्वाल और बीच में अपने बड़े भाई से साथ बांसुरी बजाते हुए श्रीकृष्ण|
     जब बलराम जी और श्रीकृष्ण ग्वालबालों के साथ उस वन में गौएँ चरा रहे थे, तब ग्वाल के वेष में प्रलम्भासुर आया| उसकी इच्छा थी कि वह श्रीकृष्ण और बलराम जी को हर ले जाये| भगवान् श्रीकृष्ण सर्वज्ञ हैं| वह उसे देखते ही पहचान गए|फिर उन्होंने उसका मित्र का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया| वे मन ही मन सोच रहे थे कि किस प्रकार इसका वध करना चाहिए? उन्होंने सभी ग्वालबालों को बुलाकर कहा- मेरे प्यारे मित्रो! आज हम लोग अपने को उचित रीति से दो दलों में बाँट लें और फिर आनन्द से खेलें| उस खेल में ग्वालबालों ने श्रीकृष्ण और बलराम जी को नायक बनाया| कुछ श्रीकृष्ण के साथी बन गए और कुछ बलराम जी के| फिर उन्होंने एक खेल खेला जिसमें एक दल के लोग दूसरे दल के लोगों को अपनी पीठ पर चढाकर निर्दिष्ट स्तान पर ले जाते थे| 
     दानव प्रलम्भासुर ने देखा कि श्रीकृष्ण तो बड़े बलवान हैं, उन्हें मैं नहीं हरा सकूँगा, वह उनके पक्ष में हो गया और बलराम जी को लेकर फुर्ती से भाग चला और पीठ से उतरने का जो नीयत स्थान था, उससे आगे निकल गया| बलराम जी बड़े भारी पर्वत के समान बोझ वाले थे| उनको लेकर प्रलम्भासुर बहुत दूर तक नहीं जा सका, उसकी चाल रुक गई| तब उसने अपना स्वभाविक रूप धारण कर लिया| उसकी आँखें आग की तरह धधक रही थीं| वह दैत्य बलराम जी को उठाए आकाश की ओर जा रहा था| पहले तो बलराम जी घबराए, फिर उन्हें अपने स्वरूप की याद आ गई| उन्होंने बहुत जोर से उसके सिर पर घूँसा मारा| उसी क्षण उसका सिर चूर-चूर हो गया और प्राणहीन होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा|
     बलराम जी परम बलशाली थे| जब ग्वालबालों ने देखा कि उन्होंने प्रलम्भासुर को मार डाला तो उनके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रही| वे बार-बार ‘वाह-वाह’ करने लगे| प्रलम्भासुर मूर्तिमान पाप था| उसकी मृत्यु से देवताओं को बहुत सुख मिला| इस तरह प्रलम्भासुर का उद्धार हुआ|
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भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा आप सभी वैष्णवों पर सदैव बनी रहे।
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